किलर लाईन, नीला प्रेत, मौत की लाईन और न जाने कितने ही ऐसे नामो से ब्लू लाईन को मीडिया ने प्रचारित कर लोगों के मन में ऐसा भय पैदा किया कि वे भी उसे इन्हीं नामो से सम्बोधित करने लगे और इस धुर्त मीडिया की तोता रटन को ही सच मान कर इन बसो को बंद करवाने के लिए उतावले होने लगे। पर ये बेवकूफ लोग इनको क्या कहें ना तो इनको अपने अच्छे का पता है और न अपने बूरे का केवल पता है तो सिर्फ इतना की मीडिया ने जो कहा वो ही सच है। तो मान लो कि ये बसे केवल जान लेती हैं। सामने आते ही किसी को भी रौंद देती हैं। ये तो हमारे लिए सबसे बड़ा खतरा हैं। अगर ये इसी प्रकार चलती रही तो हमको भी मार देंगी। तो मिला दी इस धुर्त मीडिया की तान में तान और लगवा दिया इन बसों में ताला।
आखिर ये माजरा क्या है। आइए आपको बताते हैं, इन ब्लू लाईन बसों को 1980 के आरम्भ में दिल्ली की सड़को पर उतारा गया था। दिल्ली में उस दौरान डीटीसी बसों की हड़ताल के परिणामस्वरूप इन बसो को चलाया गया था जिसके कारण दिल्ली की गति थम गई थी। उस समय इनका रंग लाल था। इन बसो को चलाने से दिल्ली के सार्वजनिक परिवहन में बहुत सुधार हुआ। और वर्तमान समय में ये दिल्ली की असली लाईफ लाईन बन चुकी हैं। और खासकर उस आम आदमी की सबसे ज्यादा जरूरत जिसके नाम पर हर पांच साल बाद ये राजनीति की रोटी सेकने वाले वोट मांगने उसकी चौखट पर जाते हैं और चुनाव समाप्त होने के बाद उस आम आदमी को भूल जाते हैं। जिनके पास दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करने के अलावा और कोई विकल्प नहीं होता।
आम आदमी मोटी-मोटी रकम देकर आटो या टैक्सी में सफर नहीं कर सकता। जिनकी जान का वास्ता देकर इन बसों को बंद किया गया है। आज वह आम आदमी ही सबसे ज्यादा इन बसों के सड़कों पर न उतरने से परेशान हो रहा है। घंटों बस स्टॉप पर खड़े होने के बाद भी इन डीटीसी बसों का कोई माई-बाप नहीं है। कब ये बसे आती हैं और कब नहीं। आती भी हैं तो उनकी हालत देखकर इस आम आदमी के पसीने छूट जाते हैं। कि आखिर इसमें चढे़ की ना चढ़े परन्तु पूरे दिन का थका मांदा वो हिम्मत करके सांस रोक कर अपनी जिंदगी को हाथ में रखकर उस पर चढ़ जाता है। उसके बाद भगवान ही उसका मालिक होता है।
जिस मैट्रो का नाम और भरोसे को लेकर इन बसो को सड़कों से हटाया गया है। आज उसकी हालत खुद खस्ता हो चुकी है। किस स्टेशन पर कितनी देर रूकेगी अथवा बीच रास्ते में कभी भी किसी भी जगह रूक जाती है। जिसके चलते हजारो लोगों की जान पर आ बनती हैं। अव्यवस्था का आलम यह है कि किसी-किसी स्टेशन पर तो सूचना देने के लिए कोई अधिकारी भी नहीं होता। मैट्रो वाले केवल तकनीकी खराबी बताकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं। इस अव्यवस्था का नजारा कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान भी लोगों को खूब देखने को मिला। जब जहां तहां कहीं भी ये मैट्रो बीच टनल में रूक गई। दो ढाई मिनट में मैट्रों की फ्रिक्वंसी देने का वादा करने करने वाली ये डीएमआरसी आज कई स्टेशनों पर 15 से 20 मिनट में भी सेवा उपलब्ध नहीं करवा पा रही है। जिसके चलते स्टेशनों पर भारी भीड़ हो जाती है जिसको कंट्रोल करने के लिए उसके पास कोई व्यवस्था उपलब्ध नहीं है। जिसके चलते लोग धक्का-मुक्की पर उतारू हो जाते हैं। और ये धक्का-मुक्की कई बार लड़ाई झगड़ों में भी बदल जाती है। गाली-गलोच होना तो आम बात हो गई है। और इन सबमें सबसे ज्यादा परेशानी महिलाओं बच्चों और विकलांग व्यक्तियों को होती है जो कि इन सबसे टक्कर नहीं ले पाते। मैट्रो स्टेशनों पर एकत्रित बेतहाशा भीड़ को देखकर डीएमआरसी वालों के भी पसीने छूट जाते हैं। और कितनी ही बार उनको ये अनाउंसमेंट करनी पड़ती है कि यदि यात्रियों को अधिक जल्दी है तो वे किसी दूसरे विकल्प का प्रयोग करें। इतना महंगा किराया देने के बाद भी आम लोगों को केवल असुविधा ही मिल रही है।
और रही बात इस भोपू मीडिया की तो उसके लिए तो इसमें भी अपनी टीआरपी बढ़ाने की होड़ लगी रहती है। ब्लू लाईन को निपटाने के प्रयास में सफल होने के बाद अब मैट्रो को भी गाली देने से पीछे नहीं हटते। फर्क सिर्फ इतना है कि अब उसकी हैडिंग होती है एक बार फिर परेशानी का सबब बनी मैट्रो, फिर थमी दिल्ली की लाईफ लाईन आदि। लेकिन इसमें गलती इस मीडिया की नहीं है। उनके लिए तो केवल यह व्यवसाय है। इनको इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की किसकी लाईफ लाईन रूकी या चली।
मुझे तो इसमें भी इस सरकार की किसी बड़ी कम्पनी से सांठगांठ की बू आ रही है। इतने लोगों के पेट पर लात मारने के पीछे किसी बड़ी कम्पनी के साथ कोई अंदरूनी गठबंधन हो सकता है। ये तो आने वाले समय में ही साफ हो सकेगा। क्योंकि ये सरकार एक जगह जहां धीरे-धीरे करके सभी सरकारी महकमों का नीजीकरण करने पर उतारू है वहीं दूसरी तरफ लोगों की जिंदगी से उसको इतनी हमदर्दी कहां से हो गई कि एक ही झटके में सारी व्यवस्था अपने हाथों में ले ली है। इस सरकार की ईमानदारी से हम अच्छी तरह से वाकिफ हैं। किस तरह पहले बिजली का नीजिकरण करके आज आम जनता को रिलायंस कम्पनी के साथ मिलकर जिस तरह से लूटा जा रहा है। उसके बाद जल बोर्ड का भी निजीकरण करने की तैयारी पूरी हो चुकी है। अब डीटीसी की आड़ लेकर किसी कम्पनी के साथ करार किया है। ये जानने की बात है। वो भी आने वाले दिनों में साफ हो जाएगा।
इसके पूर्व हाईकोर्ट ने दिल्ली सरकार को फटकार लगाते हुए कहा कि जब मामला पहले से ही कोर्ट में है तो बिना कोर्ट को संज्ञान में रखे हुये नोटिफिकेशन क्यों जारी किया गया। हाईकोर्ट ने शिला सरकार को लताड़ लगाते हुए कहा कि जब तक यातायात के पर्याप्त इंतजाम नहीं किए जाते तब तक साउथ दिल्ली के सभी रूटों पर ब्लूलाइन बसें बहाल की जाए। दूसरी तरफ, ब्लूलाइन ऑपरेटरों का कहना है कि सरकार ने उन्हें कॉमनवेल्थ गेम्स के दौरान हटने के लिए कहा, तो वे हट गए लेकिन सरकार को भी उनके मामले पर सहानुभूतिपूर्वक सोचना चाहिए क्योंकि बसें हटने से हजारों लोग बेरोजगार हो जाएंगे।