Thursday, July 26, 2012

असम को वृहद इस्लामी राज्य बनाने की साजिश


असम को वृहद इस्लामी राज्य बनाने की साजिश

असम में क्‍यों लगी आग?
-    अश्‍वनी कुमार
प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जिस राज्य का संसद में प्रतिनिधित्व करते हैं उस राज्य में हिंसा का तांडव जारी है, 41 से अधिक मौतें और अपने ही देश में डेढ़ लाख लोगों का शरणार्थी हो जाना कोई मामूली बात नहीं। अपनी रहने की जगह पर अधिकार जताने से किसी को रोकने से अजीब बात कोई और नहीं होती। अपनी ही जगह पर ताकत से नहीं बल्कि वोट बैंक की राजनीति के कारण शत्रुतापूर्ण बाहरी लोगों की लगातार घुसपैठ तो राष्ट्र की अवधारणा के ही विपरीत है। एक धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र में यह काम अधिक आसानी से हो सकता है। देश के तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोकतंत्र शासकों की नीतियों के चलते आक्रामक समुदाय के लिए यह वरदान सिद्ध है, जिसका मकसद पूरी तरह कुत्सित और निरंकुश होता है। इससे भारतीयों की अपनी जीने की जगह को अवैध बंगलादेशी समुदाय को जीने की जगह में बदलने में वैधता मिल जाती है। आज असमिया समाज और अवैध बंगलादेशी घुसपैठिये सीधे संघर्ष की स्थिति में पहुंच चुके हैं। इसके लिए जिम्‍मेदार और कोई नहीं बल्कि जिम्‍मेदार है कांग्रेस। कांग्रेस ने राष्ट्रीय हितों और राष्ट्रीय सुरक्षा की कीमत पर बंगलादेशी घुसपैठियों को अपना वोट बैंक बनाने की साजिश की। 20 वर्ष से भी अधिक समय से असमिया पहचान तय करने के एकमात्र कानून के रूप में आईएम (डीटी) एक्‍ट का लागू रहना इस बात का प्रमाण है कि धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्‍यकों की सुरक्षा के नाम पर कांग्रेस पार्टी किस हद तक चली गई। वर्तमान में हो रही हिंसा आने वाले खतरे का संकेत दे रही है क्‍योंकि इसके पीछे वजह है बंगलादेश से अवैध घुसपैठ। केन्द्र सरकार कितना भी इंकार करे लेकिन हिंसा के पीछे अवैध घुसपैठियों की भूमिका को नकारा नहीं जा सकता।
असम में तनाव कोई एक दिन में नहीं फैला। बोडो और गैर बोडो समुदाय के बीच पिछले कई महीनों से तनाव की स्थिति बनी हुई है। इस तनाव का कारण था स्वायत्तशासी बीटीसी में रहने वाले गैर बोडो समुदायों का खुलकर बोडो समुदायों द्वारा की जाने वाली अलग बोडोलैंड राज्य की मांग के विरोध में आ जाना। गैर बोडो समुदायों के दो संगठन गैर बोडो सुरक्षा मंच और अखिल बोडोलैंड मुस्लिम छात्र संघ अलग बोडोलैंड की मांग के विरुद्ध सक्रिय हैं। दोनों ही संगठनों में अवैध रूप से आए बंगलादेशी घुसपैठिये मुस्लिम समुदाय के कार्यकर्ता के रूप में सक्रिय हैं। इससे तनाव तो बन ही रहा था, जिसकी प्रतिक्रिया कोकराझार जैसे बोडो बहुल इलाकों में हो रही थी।
दोनों संगठन बीटीसी इलाके के जिन गांवों में बोडो समुदाय की आबादी आधी से कम है उन गांवों को बीटीसी से बाहर करने की मांग कर रहे हैं जबकि बोडो आबादी अलग राज्य की मांग कर ही रही है। ऐसा पहली बार हुआ है कि जब गैर जनजातीय समुदाय खुले रूप से स्थानीय जनजातीय आबादी के विरुद्ध सीधे टकराव पर उतर आए हैं।
बंगलादेश की सीमा से सटा धुबरी जिला बड़ी समस्या बन चुका है। इस जिले में लगातार घुसपैठ हो रही है। 2011 की जनगणना में यह जिला मुस्लिम बहुल हो चुका है। 1991-2001 के बीच असम में मुस्लिमों का अनुपात 15.03 प्रतिशत से बढक़र 30.92 प्रतिशत हो गया है। इस दशक में असम के बोगाईगांव, कोकराझार, बरपेटा और कछार के करीमगंज और हाईलाकड़ी में मुस्लिमों की आबादी बढ़ी है। मुस्लिम आबादी 2001 से अब तक कितनी बढ़ी होगी इसका अनुमान लगाया जा सकता है। आज स्थिति यह है कि राज्य की जनसंख्‍या का स्वरूप बदल चुका है और अवैध घुसपैठिये असम के मूल वनवासियों, जनजातियों की हत्याएं कर रहे हैं, उनके घर जलाए जा रहे हैं, उनको अपनी ही जमीन से बेदखल किया जा रहा है। सरकार के संरक्षण में भारत के नागरिक बन बैठे घुसपैठिये भारत के मूल नागरिकों का ही नरसंहार कर रहे हैं। बंगलादेशी कट्टरपंथियों, घुसपैठियों अैर आतंकवादी संगठनों की बदौलत एक वृहद इस्लामी राज्य की ओर कदम बढ़ा रहे हैं। असम के मूल नागरिकों को बंगलादेश के हिन्दुओं की तरह से ही दोयम दर्जे का नागरिक बनाने का षड्यंत्र आकार ले चुका है। अवैध बंगलादेशी घुसपैठियों को देश से बाहर करने की राष्ट्रवादी मांग को साम्‍प्रदायिक कर देने की कुत्सित राजनीति आज भी चरम पर है। असम और दिल्ली में बैठे धर्मनिरपेक्षता के झंडाबरदारो सम्‍भल जाओ, स्थिति की गम्‍भीरता को समझो, मातृभूमि की रक्षा का संकल्प करो वरना यह राष्ट्र तुम्‍हें कभी माफ नहीं करेगा।

पंजाब केसरी संपादकीय 27 जुलाई 2012



Friday, December 9, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (32) समाप्‍त

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (32)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 02-11-2011


भारतीय संविधान में हालांकि कानून की नजर में सभी नागरिक बराबर हैं मगर इस देश में विभिन्न धर्मावलम्बियों के लिए अलग-अलग कानून हैं। मुसलमानों के मामलों को तय करने के लिए शरियत अदालतें और दारूल कजा नामक उच्च स्तर की अदालतें हैं। इनमें मुसलमानों से सम्‍बन्धित मामले शरा मोहम्‍मदी की रोशनी में काजी तय करते हैं।

पंडित नेहरू की कृपा से 1952 में हिन्दू कोड बिल बनाया गया था, जिसमें तलाक की व्यवस्था की गई जो कि हिन्दू धर्म ग्रंथों के सर्वथा विपरीत थी। हाल में ही उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि भारतीय संसद ने आज तक जो कानून बनाए वह सिर्फ हिन्दू सम्‍प्रदाय तक ही सीमित थे। अन्य सम्‍प्रदायों के मामले में सरकार को कानून बनाने की हिम्‍मत नहीं हुई क्‍योंकि वह पर्सनल लॉ के मामले में काफी संवेदनशील हैं। सरकार उनके पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने की हिम्‍मत नहीं करती।

उच्चतम न्यायालय कम से कम पांच बार और देश के विभिन्न उच्च न्यायालय एक दर्जन से अधिक बार देश के सभी वर्गों के लिए समान पर्सनल लॉ बनाने का निर्देश दे चुके हैं मगर सरकार के कानों पर आज तक जूं नहीं रेंगी क्‍योंकि उसे अल्पसं2यकों की नाराजगी का डर है।

शाहबानो केस में मुसलमानों के आक्रोश के कारण सरकार ने एक कानून बना डाला जिसके तहत यह तय किया गया कि मुसलमान महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक देने के बाद पत्नियों को गुजारा भत्ता देने की कोई जरूरत नहीं। तर्क यह दिया गया कि शरई कानूनों के अनुसार इदत पीरियड में सिर्फ तीन महीनों के लिए पति के लिए गुजारा भत्ता देना ही काफी है।

दिल्ली के शाही इमाम अब्‍दुल्ला बुखारी के खिलाफ देश भर की अदालतों ने 216 बार वारंट जारी किए थे मगर एक बार भी दिल्ली पुलिस को इन वारंटों को तामील कराने की हिम्‍मत नहीं हुई। साफ है कि शाही इमाम देश के कानून और संविधान से बहुत ऊंचे हैं।

संसद ने हाल में ही अनिवार्य शिक्षा कानून पारित किया था मगर मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण अब सरकार ने इस मामले में घुटने टेक दिए हैं। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्‍बल ने यह घोषणा की है कि यह क कानून मुस्लिम मदरसों पर लागू नहीं होगा। क्‍या यह कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही बनाया गया है? देश में दो करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं। गत दस वर्षों में इनमें से केवल दस हजार को ही विदेशी नागरिक करार देकर वापस बंगलादेश खदेड़ा गया। शेष बंगलादेशी इस देश में बिना बुलाए मेहमान होने के बावजूद मौज उड़ा रहे हैं।

हाल में ही मुरादाबाद के एक गांव में जब पुलिस एक अपराधी को पकडऩे के लिए गई तो गांव वालों ने उसकी गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस पर हमला किया। बाद में स्थानीय मुसलमानों ने पुलिस पार्टी पर यह झूठा आरोप लगा दिया कि उन्होंने इस छापे के दौरान कुरान का अपमान किया है। उर्दू समाचारपत्रों ने इस मामले को खूब उछाला। उत्तर प्रदेश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए, जिनसे भयभीत होकर सरकार ने घुटने टेक दिए और दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया। क्‍या यही न्याय है?

एक बात हम सबके लिए विचारणीय है कि क्‍यों 80 प्रतिशत के बहुमत की अवहेलना करके उसे एक सम्‍प्रदाय की भूमिका निभाने के लिए लाचार किया जाता है और क्‍यों 12 प्रतिशत के आसपास की जनसंख्‍या वाले मुस्लिम अल्पमत तथा 2 प्रतिशत के आसपास के अल्पमत को भी राष्ट्रीय महत्व दिया जाता है। संसार के किसी भी देश में 80 प्रतिशत के बहुमत वाली जनसंख्‍या को साम्‍प्रदायिक नहीं माना जाता। वह तो अपने आप में एक स्वस्थ एवं सबल राष्ट्र होने की सामथ्र्य रखती है, परन्तु हमारे यहां यह इसीलिए होता है कि 80 प्रतिशत हिन्दू बहुमत संगठित न होकर अलग-अलग पार्टियों को अपनी रुचि के अनुसार वोट देता है और मुस्लिम अल्पमत संगठित होकर हिन्दू के मुकाबले एकमुसलमान को वोट देकर उसे सफल बनाता है। मुसलमान के वोट किसी भी गैर मुसलमान को तब ही मिलते हैं जबकि मुसलमान चुनाव क्षेत्र में न हो।

मुस्लिम सम्‍प्रदाय वोट एक व्यक्ति या पार्टी को संगठित होकर डालता है, इसीलिए उसके वोट की कीमत आंकी जाती है। हिन्दुओं के वोट अब तक सेकुलर पार्टियों को ही मिलते रहे हैं और वह भी बंटकर, इसलिए उसके वोट का कोई महत्व नहीं रह जाता। हिन्दुओं में बहुत देर के बाद यह समझ आनी आरम्‍भ हुई है कि ये सेकुलर पार्टियां हिन्दुओं से वोट लेकर मुस्लिम साम्‍प्रदायिकता को पालपोस रही है, इसीलिए उनकी हर बात की महत्‍व होती है और हिन्दुओं की हर बात साम्‍प्रदायिक और देश विरोधी बन जाती है। उनकी यह जागरूकता ही इन सेकुलर पार्टियों का सिरदर्द है। अगर हिन्दुओं ने एकजुट होकर किसी भी हिन्दुत्वनिष्ठ पार्टी को वोट देकर राज्य सत्ता तक पहुंचा दिया फिर इसका क्‍या होगा? अब तक जो हिन्दू गलत प्रचार-साधनों, सत्ता बल और धनबल के द्वारा भरमाया जाता था वह अब शायद सम्‍भव नहीं रहा, इसीलिए ये सब सेकुलर पार्टियां हिन्दुत्वनिष्ठ नेताओं तथा पार्टियों के विरुद्ध अनर्गल प्रचार कर रही हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे अंग्रेज तथा मुस्लिम लीग कांग्रेस को दिन-रात हिन्दू संस्था बताते थे, क्‍योंकि इसी में उनका स्वार्थ सधता था और कांग्रेस हिन्दू विरोध की सीमा तकजाकर भी अपने को राष्ट्रीय संस्था बताती थी।

इन शब्‍दों के साथ मैं इस लम्‍बी लेखमाला को विराम देना चाहता हूं। अफसोस 125 करोड़ का यह मुल्क आज एक मोहताज सा हो गया है। देशवासियों को प्राचीन गौरव और परम्‍पराओं को याद रखना होगा और देश के हिन्दुओं को निर्णायक जंग के लिए एकजुट होना होगा।

''जब किसी जाति का अहं चोट खाता है

पावक प्रचंड होकर, बाहर आता है

यह वही चोट खाए स्वदेश का बल है

आहत भुजंग है, सुलगा हुआ अनल है।'' (समाप्त)

Thursday, December 8, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (31)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (31)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 01-12-2011

साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक के प्रावधानों पर विस्तृत चर्चा करने के बाद मैं कुछ अन्य बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहूंगा।

इस वर्ष हज यात्रा पर भारत सरकार 1250 करोड़ अधिक धन राशि खर्च कर रही है। इसमें सवा लाख यात्रियों में से हर यात्री को दी जाने वाली 83 हजार रुपए की सब्सिडी शामिल है। गत वर्ष सब्सिडी की धनराशि केंद्र ने प्रति हज यात्री 73 हजार रुपए दी थी। इस साल विमान भाड़ा बढ़ जाने के कारण इसमें वृद्धि करनी पड़ी है। इस साल हज का यात्रा भाड़ा एक लाख था जिसमें से हाजियों से प्रति यात्री सिर्फ 16 हजार ही वसूले गए, शेष धनराशि सरकारी कोष से दी गई।

उच्चतम न्यायालय एवं संसदीय समितियां इस सब्सिडी को बंद करने का केंद्र सरकार को एकदर्जन बार निर्देश दे चुकी हैं मगर भारत सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

  • विश्व भर में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां पर हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है।
  • किसी भी मुस्लिम देश में कोई भी सब्सिडी हाजियों को नहीं दी जाती।
  • पाकिस्तान हाजियों को सब्सिडी नहीं देता।
  • क्‍या यह सरकार के सेकुलरवादी स्वरूप के खिलाफ नहीं?

सरकार पाकिस्तान जाने वाले सिख यात्रियों या कटास राज की यात्रा और कैलाश मानसरोवर जाने वाले को एक पैसा भी सब्सिडी क्‍यों नहीं देती? क्‍या यह मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दू-सिखों के साथ भेदभाव नहीं। भारत का संविधान बिना धार्मिक भेदभाव के सभी नागरिकों को एक समान मानता है, तो फिर यह भेदभाव क्‍या संविधान का उल्लंघन नहीं?

हाजियों को सब्सिडी देने का सिलसिला 1950 से शुरू हुआ। जब सरकार ने मुंबई से जलयानों द्वारा हाजियों को सऊदी अरब ले जाने वाले 'मुगल लाइन्स' नामक शिपिंग कम्‍पनी का राष्ट्रीयकरण किया। तब सब्सिडी की धनराशि सिर्फ चार करोड़ ही थी। अब जलयानों द्वारा हज यात्रा सरकार ने बंद कर दी है मगर विमान यात्रियों को सब्सिडी देने का सिलसिला जारी है।

1990 तक हाजी मुंबई से हज पर जाते थे मगर अब 27 जगहों से विशेष विमान हज यात्रियों को लेकर जाते हैं। भारत सरकार सऊदी अरब में हाजियों के लिए ठहरने के अतिरिक्‍त फ्री चिकित्सा व्यवस्था भी करती है। आजादी से पूर्व निजाम हैदराबाद द्वारा हर वर्ष 5 हजार यात्रियों को सरकारी खर्च पर हज यात्रा के लिए भेजा जाता था। इसके अतिरिक्‍त देश की चौदह मुस्लिम रियासतों ने मक्‍का मदीना में राबात बना रखे थे, जहां पर हाजी मुफ्त ठहर सकते थे। अब यह व्यवस्था केन्द्र ने खत्म कर दी है।

हर वर्ष सरकार सारा खर्चा खुद दे कर 200-250 सरकार के करीबी मुस्लिम नेताओं को गुड-विल-मिशन के रूप में सऊदी अरब भिजवाती है। उच्चतम न्यायालय ने इसे न भेजने का सरकार को निर्देश दिया था, मगर यह सिलसिला अब भी जारी है। इस साल राज्य सभा के उप सभापति के. रहमान खान के नेतृत्व में सद्भावना मिशन भेजा गया था।

हज यात्रा की व्यवस्था करने के लिए केंद्र सरकार के विदेश विभाग की एक विशेष शाखा है जिसका प्रभारी संयुक्‍त सचिव दर्जे का वरिष्ठ अधिकारी होता है। इसके अतिरिक्‍त एक केन्द्रीय हज समिति है जिसका चेयरमैन सत्तारूढ़ दल का कोई नेता बनाया जाता है। इन दिनों इस कमेटी की अध्यक्ष कांग्रेस की महामंत्री मोहसिना किदवई हैं। इसके अतिरिक्‍त प्रत्येक राज्य में एक राज्य स्तर की हज समिति है। हर राज्य में हज मंजिल है जिसमें सऊदी अरब रवाना होने से पूर्व हाजियों एवं उनके परिवारजनों को सरकारी खर्च पर अतिथि के रूप में ठहराया जाता है। क्‍या यह सुविधा किसी हिंदू संप्रदाय से संबंध रखने वाले व्यक्ति को प्राप्त है? (क्रमश:)

Tuesday, December 6, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (30)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (30)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 30-11-2011

इस विधेयक के मसौदे को जिस तरीके से तैयार किया गया है उससे साफ है कि यह कुछ उन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का काम है जिन्होंने गुजरात के अनुभव से यह सीखा है कि वरिष्ठ नेताओं को किसी ऐसे अपराध के लिए कैसे घेरा जाये, जो उन्होंने किया ही नहीं।

इस विधेयक के तहत जिन अपराधों की परिभाषा की गई है उन्हें जानबूझकर अस्पष्ट छोड़ दिया गया है। साम्‍प्रदायिक और किसी वर्ग को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा का तात्पर्य राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करना है। धर्मनिरपेक्षता के मामले में कुछ उचित मतभेद हो सकते हैं। धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा जुमला है जिसका अर्थ अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग बताया जाता है। आखिर किस परिभाषा के आधार पर अपराध का निर्धारण किया जायेगा? इसी तरह सवाल यह भी है कि शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने से कोई ठोस निर्णय लेने के लिए काफी गुंजाइश है कि शत्रुतापूर्ण माहौल का आशय क्‍या है।

इस प्रकार के कानून के अनिवार्य परिणाम ये होंगे कि किसी भी तरह के साम्‍प्रदायिक संघर्ष में बहुसंख्‍यक समुदाय को ही दोषी के रूप में देखा जाएगा। दोष की सम्‍भावना तब तक बनी रहेगी जब तकदोष सिद्ध नहीं हो जाता। इस कानून के तहत बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य को ही दोषी ठहराया जायेगा। अल्पसंख्‍यक समुदाय का कोई भी सदस्य घृणा संबंधी प्रचार या साम्‍प्रदायिक हिंसा का अपराध कभी नहीं कर सकता। वास्तव में इस कानून के तहत उसे निर्दोष बताने का वैधानिक उपबंध है। केन्द्र और राज्य स्तर पर निर्धारित संवैधानिक व्यवस्था को संस्थागत पूर्वाग्रह से निश्चय ही नुक्‍सान होगा। इसका सदस्यता संबंधी ढांचा जाति और समुदाय पर आधारित है।

जो कानून तैयार किया गया है उसे लागू करते ही भारत में समुदायों के बीच आपसी रिश्तों में कटुता-वैमनस्यता फैल जायेगी। यह एक ऐसा कानून है जिसके खतरनाक दुष्परिणाम होंगे। यह तय है कि इसका दुरुपयोग किया जायेगा। शायद इस कानून का ऐसा मसौदा तैयार करने के पीछे यही उद्देश्य भी है। इससे अल्पसंख्‍यक साम्‍प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिलेगा। कानून में समानता और निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् में सामाजिक कार्यकर्ताओं से यह आशा की जा सकती है कि वे ऐसा खतरनाक और भेदभावपूर्ण कानून का मसौदा तैयार करें। यह आश्चर्य की बात है कि उस निकाय के राजनीतिक प्रमुख ने इस मसौदे को स्वीकृति कैसे प्रदान की। जब कुछ व्यक्तियों ने टाडा-आतंकवाद विरोधी कानून के खिलाफ एक अभियान चलाया था, तो संप्रग के सदस्यों ने यह तर्क दिया था कि आतंकवादियों पर भी साधारण कानूनों के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है। इससे अधिक कठोर कानून अब बनाया जा रहा है।

राज्य निराश होकर इस बात को देख रहे हैं कि जब केन्द्र सरकार इस प्रकार का गलत कदम उठाने जा रही है, उनकी शक्तियों को हड़पा जा रहा है। साम्‍प्रदायिक सौहार्द निष्पक्षता से प्राप्त किया जा सकता है न कि इसके विपरीत भेदभाव पैदा करके।

केन्द्र उन निरंकुश शक्तियों को फिर से प्राप्त करना चाहता है, जो बोम्‍मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले धारा 356 के तहत उसके पास थीं। बोम्‍मई मामले में पहले केन्द्र सरकार धारा 356 का इस्तेमाल कर निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर देती थी। इंदिरा गांधी शासन से लेकर राजीव गांधी शासन तक विपक्ष की कई राज्य सरकारों को बर्खास्त किया जाता रहा। 1950 में संविधान लागू होने से लेकर 1994 में सर्वोच्च न्यायालय के बोम्‍मई फैसले तक सरकार ने 102 बार धारा 356 का इस्तेमाल किया। इनमें से 77 मामलों में केन्द्र में कांग्रेस पार्टी का शासन था। इंदिरा जी ने इस प्रावधान का 50 बार इस्तेमाल किया। धारा 356 का दुरुपयोग इस हद तक बढ़ गया कि मजबूर होकर सर्वोच्च न्यायालय को बोम्‍मई मामले में निर्णय देकर इस पर रोक लगानी पड़ी।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 356 की उद्घोषणा न्यायिक पुनर्विचार के दायरे में आएगी और अदालत फैसला करेगी कि इसे लागू करने के पीछे कोई दुर्भावना तो नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रपति द्वारा किया गया फैसला दुर्भावनाग्रस्त पाया जाता है तो अदालत फैसला बदल भी सकती है। ऐसा लगता है कि क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत से घबराई कांग्रेस साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक के माध्यम से धारा 356 को चोर दरवाजे से फिर से लागू करना चाहती है।(क्रमश:)

Monday, December 5, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (29)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (29)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 29-11-2011

साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक में बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्यों को दोषी माना जाएगा। बहुसंख्‍यक अर्थात हिन्दुओं को दोषी बनाने वाला शब्‍द है 'समूह'। विधेयक के प्रारूप में समूह की परिभाषा में इसका तात्पर्य पंथक या भाषायी अल्पसंख्‍यकों से है। इस कानून के अनुसार'समूह' अर्थात् अल्पसंख्‍यक समुदाय के किसी भी सदस्य के खिलाफ किसी प्रकार का सामाजिक अपराध तो दंडनीय है मगर किसी भी अल्पसंख्‍यक द्वारा किसी बहुसंख्‍यक अर्थात हिन्दू पर किया गया साम्‍प्रदायिक अपराध दंडनीय नहीं माना जाएगा। विधेयक के प्रारूप में बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को 'समूह' में नहीं लिया गया और इस कानून के नियम केवल इस कानून में परिभाषित 'समूह' के सदस्यों पर ही लागू होंगे।

भारतीय संविधान में किसी भी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक अदालत में उसका दोष सिद्ध नहीं हो जाता मगर इस कानून में किसी व्यक्ति पर आरोप लगाना है तो उसे तब तकदोषी माना जाएगा जब तक वह अपने को निर्दोष साबित नहीं कर देता।

  • कानून में धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव क्‍यों किया गया?
  • अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी समुदाय के व्यक्ति ने किया हो।
  • 21वीं शताब्‍दी में एक ऐसा कानून बनाया जा रहा है जिसमें किसी अपराधी की जाति और धर्म उसको अपराध से मुक्त ठहराता है।
  • यह अंधा कानून है, काला कानून है।

विधेयक में साम्‍प्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए एक सात सदस्यीय राष्ट्रीय प्राधिकरण होगा। इन 7 सदस्यों में से कम से कम चार सदस्य (जिसमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल हैं) समूह अर्थात् अल्पसंख्‍यक समुदाय से होंगे। इसी तरह का एक प्राधिकरण राज्यों के स्तर पर भी गठित होगा। अत: इस निकाय की सदस्यता धार्मिक और जातीय आधार के अनुसार होगी। इस कानून के तहत अभियुक्त केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के ही होंगे। अधिनियम का अनुपालन एक ऐसी संस्था द्वारा किया जाएगा, जिसमें निश्चित ही बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य अल्पमत में होंगे। सरकारों को इस प्राधिकरण को पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां उपलब्‍ध करानी होंगी। इस प्राधिकरण को किसी शिकायत पर जांच करने, किसी इमारत में घुसने, छापा मारने और खोजबीन करने का अधिकार होगा और वह कार्यवाही करने, अभियोजन के लिए कार्यवाही रिकार्ड करने के साथ-साथ सरकारों से सिफारिशें करने में भी सक्षम होगा। उसके पास सशस्त्र बलों से निपटने की शक्ति होगी। वह केन्द्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर सकेगा। इस प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति केन्द्रीय स्तर पर एककोलेजियम द्वारा होगी, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी का एक नेता शामिल होगा। राज्यों के स्तर पर भी ऐसी ही व्यवस्था होगी। अत: केन्द्र और राज्यों में इस प्राधिकरण के गठन में विपक्ष की बात को तरजीह दी जायेगी।

इस अधिनियम के तहत जांच के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाएगी वह असाधारण है। भारतीय दंड संहिता की धारा 161 के तहत कोई बयान दर्ज नहीं किया जायेगा। पीडि़त के बयान केवल धारा 164 के तहत होंगे अर्थात अदालतों के सामने। सरकार को इस कानून के तहत संदेशों और टेली-कम्‍युनिकेशन को बाधित करने और रोकने का अधिकार होगा। अधिनियम के खंड 74 के तहत यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा संबंधी प्रचार का आरोप लगता है तो उसे तब तक पूर्वधारणा के अनुसार दोषी माना जायेगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध नहीं हो जाता। साफ है कि आरोप सबूत के समान होगा। इस विधेयक के खंड 67 के तहत लोकसेवकों के खिलाफ मामला चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। मुकद्दमे की कार्यवाही चलाने वाले विशेष सरकारी अभियोजन सत्य की सहायता के लिए नहीं,अपितु पीडि़त के हित में काम करेंगे। शिकायतकर्ता पीडि़त का नाम और उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी। मामले की प्रगति रपट पुलिस शिकायतकर्ता को बताएगी। संगठित साम्‍प्रदायिक और किसी समुदाय को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा इस कानून के तहत राज्य के भीतर आन्तरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी। इसका यह अर्थ है कि केन्द्र सरकार ऐसी दशा में अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने में सक्षम होगी। (क्रमश:)

Sunday, December 4, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (28)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (28)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 28-11-2011

''सिंध श्रोत से हिन्दू सिंधु तक रहते आए हैं

इस धरती को मां कहते जो हिन्दू उनको कहते हैं

हिन्दू उनको कहते हैं, हम हिन्दू उन्हें ही कहते हैं

सम्‍प्रदाय हो चाहे जो भी, पूजा का कुछ ढंग रहे

प्रांत, जाति का प्रश्र नहीं, कुछ काला-गोरा रंग रहे

सब समाज अपनापन हो, सुख-दु:ख में नित संग रहे

राष्ट्र देह परिपुष्ट बनाने, जुटे सदा जो अंग रहे

मिलकर बढ़ते चरम शिखर तक, मिल कर संकट सहते हैं

इस धरती को मां कहते, हम हिन्दू उन्हें ही कहते हैं

एक हमारा रक्त, रक्त में एक भारती धारा है

एक हमारा शील, शील में एक भरी मर्यादा है

आजादी है बसी प्राण में, प्राण योग से बांधा है

भौतिकता के मस्त गजों को, संयम द्वारा साधा है

मानवता के अडिग उपासक, दानवता को दहते हैं

इस धरती को मां कहते हैं हम हिन्दू उन्हीं को कहते हैं।''

हिन्दुओं के देश में हमेशा से भेदभाव होता आया है। उसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह जताया है। साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक को लेकर श्री जेतली कहते हैं कि साम्‍प्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध कानून और व्यवस्था की समस्या होती है। कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटना स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकार में आता है। केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन में केन्द्र सरकार को कानून और व्यवस्था संबंधी मुद्दों से निपटने का कोई प्रत्यक्ष प्राधिकार प्राप्त नहीं है; न तो उनसे निपटने के लिए उसके पास प्रत्यक्ष शक्ति प्राप्त है और न ही वह इस विषय पर कानून बना सकती है। केन्द्र सरकार का क्षेत्राधिकार इसे सलाह, निर्देश देने और धारा 356 के तहत यह राय प्रकट करने तक सीमित करता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम कर रही है या नहीं। इस प्रस्तावित विधेयक द्वारा ही केन्द्र सरकार राज्यों के अधिकारों को हड़प लेगी और वह राज्यों के क्षेत्राधिकार में आने वाले विषयों पर कानून बना सकेगी।

भारत धीरे-धीरे और अधिक सौहार्दपूर्ण अन्तर-समुदाय संबंधों की ओर बढ़ रहा है। जब कभी भी छोटा सा साम्‍प्रदायिक अथवा जातीय दंगा होता है, तो उसकी निंदा हेतु एक राष्ट्रीय विचारधारा तैयार हो जाती है। सरकारें, मीडिया, अन्य संस्थाओं सहित न्यायालय अपना-अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं। नि:संदेह साम्‍प्रदायिक तनाव या हिंसा फैलाने वालों को दंडित किया जाना चाहिए तथापि इस प्रारूप विधेयक में यह मान लिया गया है कि साम्‍प्रदायिक समस्या केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्यों द्वारा ही पैदा की जाती है और अल्पसंख्‍यक समुदाय के सदस्य कभी ऐसा नहीं करते अत: बहुसंख्‍यकसमुदाय के सदस्यों द्वारा अल्पसंख्‍यक समुदाय के लोगों के खिलाफ किए गए साम्‍प्रदायिक अपराध तो दंडनीय हैं। अल्पसंख्‍यक समूहों द्वारा बहुसंख्‍यक समुदाय के खिलाफ किए गए ऐसे अपराध कतई दंडनीय नहीं माने गए हैं। अत: इस विधेयक के तहत यौन संबंधी अपराध इस हालात में दंडनीय है यदि वह किसी अल्पसंख्‍यक 'समूह' के किसी व्यक्ति के विरुद्ध किया गया हो।

किसी राज्य में बहुसंख्‍यक समुदाय के किसी व्यक्ति को 'समूह' में शामिल नहीं किया गया है। अल्पसंख्‍यक समुदाय के विरुद्ध 'घृणा संबंधी प्रचार' को अपराध माना गया है जबकि बहुसंख्‍यक समुदाय के मामले में ऐसा नहीं है। संगठित और लक्षित हिंसा, 'घृणा संबंधी प्रचार', ऐसे व्यक्तियों को वित्तीय सहायता, जो अपराध करते हैं, यातना देना या सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपनी ड्यूटी में लापरवाही, ये सभी उस हालात में अपराध माने जायेंगे यदि वे अल्पसंख्‍यक समुदाय के किसी सदस्य के विरुद्ध किये गये हों अन्यथा नहीं। बहुसंख्‍यक समुदाय का कोई भी सदस्य कभी भी पीडि़त नहीं हो सकता।

विधयेक का यह प्रारूप अपराधों को मनमाने ढंग से पुनर्परिभाषित करता है। अल्पसंख्‍यकसमुदाय का कोई भी सदस्य इस कानून के तहत बहुसंख्‍यक समुदाय के विरुद्ध किए गए किसी अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। केवल बहुसंख्‍यक समुदाय का सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकता है और इसलिए इस कानून का विधायी मंतव्य यह है कि चूंकि केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकते हैं, अत: उन्हें ही दोषी मानकर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। यदि इसे ऐसे स्वरूप में लागू किया जाता है, जैसा कि इस विधेयक में प्रावधान है, तो इसका भारी दुरुपयोग हो सकता है। इससे कुछ समुदायों के सदस्यों को ऐसे अपराध करने की प्रेरणा मिलेगी और इस तथ्य से वे और उत्साहित होंगे कि उनके विरुद्ध कानून के तहत कोई आरोप तो कभी लगेगा ही नहीं। आतंकी ग्रुप अब आतंकी हिंसा नहीं फैलाएंगे। उन्हें साम्‍प्रदायिक हिंसा फैलाने में प्रोत्साहन मिलेगा क्‍योंकि वे यह मानकर चलेंगे कि जेहादी ग्रुप के सदस्यों को इस कानून के अन्तर्गत दंडित नहीं किया जाएगा।(क्रमश:)

यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...