Friday, December 9, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (32) समाप्‍त

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (32)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 02-11-2011


भारतीय संविधान में हालांकि कानून की नजर में सभी नागरिक बराबर हैं मगर इस देश में विभिन्न धर्मावलम्बियों के लिए अलग-अलग कानून हैं। मुसलमानों के मामलों को तय करने के लिए शरियत अदालतें और दारूल कजा नामक उच्च स्तर की अदालतें हैं। इनमें मुसलमानों से सम्‍बन्धित मामले शरा मोहम्‍मदी की रोशनी में काजी तय करते हैं।

पंडित नेहरू की कृपा से 1952 में हिन्दू कोड बिल बनाया गया था, जिसमें तलाक की व्यवस्था की गई जो कि हिन्दू धर्म ग्रंथों के सर्वथा विपरीत थी। हाल में ही उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि भारतीय संसद ने आज तक जो कानून बनाए वह सिर्फ हिन्दू सम्‍प्रदाय तक ही सीमित थे। अन्य सम्‍प्रदायों के मामले में सरकार को कानून बनाने की हिम्‍मत नहीं हुई क्‍योंकि वह पर्सनल लॉ के मामले में काफी संवेदनशील हैं। सरकार उनके पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने की हिम्‍मत नहीं करती।

उच्चतम न्यायालय कम से कम पांच बार और देश के विभिन्न उच्च न्यायालय एक दर्जन से अधिक बार देश के सभी वर्गों के लिए समान पर्सनल लॉ बनाने का निर्देश दे चुके हैं मगर सरकार के कानों पर आज तक जूं नहीं रेंगी क्‍योंकि उसे अल्पसं2यकों की नाराजगी का डर है।

शाहबानो केस में मुसलमानों के आक्रोश के कारण सरकार ने एक कानून बना डाला जिसके तहत यह तय किया गया कि मुसलमान महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक देने के बाद पत्नियों को गुजारा भत्ता देने की कोई जरूरत नहीं। तर्क यह दिया गया कि शरई कानूनों के अनुसार इदत पीरियड में सिर्फ तीन महीनों के लिए पति के लिए गुजारा भत्ता देना ही काफी है।

दिल्ली के शाही इमाम अब्‍दुल्ला बुखारी के खिलाफ देश भर की अदालतों ने 216 बार वारंट जारी किए थे मगर एक बार भी दिल्ली पुलिस को इन वारंटों को तामील कराने की हिम्‍मत नहीं हुई। साफ है कि शाही इमाम देश के कानून और संविधान से बहुत ऊंचे हैं।

संसद ने हाल में ही अनिवार्य शिक्षा कानून पारित किया था मगर मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण अब सरकार ने इस मामले में घुटने टेक दिए हैं। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्‍बल ने यह घोषणा की है कि यह क कानून मुस्लिम मदरसों पर लागू नहीं होगा। क्‍या यह कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही बनाया गया है? देश में दो करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं। गत दस वर्षों में इनमें से केवल दस हजार को ही विदेशी नागरिक करार देकर वापस बंगलादेश खदेड़ा गया। शेष बंगलादेशी इस देश में बिना बुलाए मेहमान होने के बावजूद मौज उड़ा रहे हैं।

हाल में ही मुरादाबाद के एक गांव में जब पुलिस एक अपराधी को पकडऩे के लिए गई तो गांव वालों ने उसकी गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस पर हमला किया। बाद में स्थानीय मुसलमानों ने पुलिस पार्टी पर यह झूठा आरोप लगा दिया कि उन्होंने इस छापे के दौरान कुरान का अपमान किया है। उर्दू समाचारपत्रों ने इस मामले को खूब उछाला। उत्तर प्रदेश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए, जिनसे भयभीत होकर सरकार ने घुटने टेक दिए और दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया। क्‍या यही न्याय है?

एक बात हम सबके लिए विचारणीय है कि क्‍यों 80 प्रतिशत के बहुमत की अवहेलना करके उसे एक सम्‍प्रदाय की भूमिका निभाने के लिए लाचार किया जाता है और क्‍यों 12 प्रतिशत के आसपास की जनसंख्‍या वाले मुस्लिम अल्पमत तथा 2 प्रतिशत के आसपास के अल्पमत को भी राष्ट्रीय महत्व दिया जाता है। संसार के किसी भी देश में 80 प्रतिशत के बहुमत वाली जनसंख्‍या को साम्‍प्रदायिक नहीं माना जाता। वह तो अपने आप में एक स्वस्थ एवं सबल राष्ट्र होने की सामथ्र्य रखती है, परन्तु हमारे यहां यह इसीलिए होता है कि 80 प्रतिशत हिन्दू बहुमत संगठित न होकर अलग-अलग पार्टियों को अपनी रुचि के अनुसार वोट देता है और मुस्लिम अल्पमत संगठित होकर हिन्दू के मुकाबले एकमुसलमान को वोट देकर उसे सफल बनाता है। मुसलमान के वोट किसी भी गैर मुसलमान को तब ही मिलते हैं जबकि मुसलमान चुनाव क्षेत्र में न हो।

मुस्लिम सम्‍प्रदाय वोट एक व्यक्ति या पार्टी को संगठित होकर डालता है, इसीलिए उसके वोट की कीमत आंकी जाती है। हिन्दुओं के वोट अब तक सेकुलर पार्टियों को ही मिलते रहे हैं और वह भी बंटकर, इसलिए उसके वोट का कोई महत्व नहीं रह जाता। हिन्दुओं में बहुत देर के बाद यह समझ आनी आरम्‍भ हुई है कि ये सेकुलर पार्टियां हिन्दुओं से वोट लेकर मुस्लिम साम्‍प्रदायिकता को पालपोस रही है, इसीलिए उनकी हर बात की महत्‍व होती है और हिन्दुओं की हर बात साम्‍प्रदायिक और देश विरोधी बन जाती है। उनकी यह जागरूकता ही इन सेकुलर पार्टियों का सिरदर्द है। अगर हिन्दुओं ने एकजुट होकर किसी भी हिन्दुत्वनिष्ठ पार्टी को वोट देकर राज्य सत्ता तक पहुंचा दिया फिर इसका क्‍या होगा? अब तक जो हिन्दू गलत प्रचार-साधनों, सत्ता बल और धनबल के द्वारा भरमाया जाता था वह अब शायद सम्‍भव नहीं रहा, इसीलिए ये सब सेकुलर पार्टियां हिन्दुत्वनिष्ठ नेताओं तथा पार्टियों के विरुद्ध अनर्गल प्रचार कर रही हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे अंग्रेज तथा मुस्लिम लीग कांग्रेस को दिन-रात हिन्दू संस्था बताते थे, क्‍योंकि इसी में उनका स्वार्थ सधता था और कांग्रेस हिन्दू विरोध की सीमा तकजाकर भी अपने को राष्ट्रीय संस्था बताती थी।

इन शब्‍दों के साथ मैं इस लम्‍बी लेखमाला को विराम देना चाहता हूं। अफसोस 125 करोड़ का यह मुल्क आज एक मोहताज सा हो गया है। देशवासियों को प्राचीन गौरव और परम्‍पराओं को याद रखना होगा और देश के हिन्दुओं को निर्णायक जंग के लिए एकजुट होना होगा।

''जब किसी जाति का अहं चोट खाता है

पावक प्रचंड होकर, बाहर आता है

यह वही चोट खाए स्वदेश का बल है

आहत भुजंग है, सुलगा हुआ अनल है।'' (समाप्त)

Thursday, December 8, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (31)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (31)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 01-12-2011

साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक के प्रावधानों पर विस्तृत चर्चा करने के बाद मैं कुछ अन्य बिन्दुओं पर चर्चा करना चाहूंगा।

इस वर्ष हज यात्रा पर भारत सरकार 1250 करोड़ अधिक धन राशि खर्च कर रही है। इसमें सवा लाख यात्रियों में से हर यात्री को दी जाने वाली 83 हजार रुपए की सब्सिडी शामिल है। गत वर्ष सब्सिडी की धनराशि केंद्र ने प्रति हज यात्री 73 हजार रुपए दी थी। इस साल विमान भाड़ा बढ़ जाने के कारण इसमें वृद्धि करनी पड़ी है। इस साल हज का यात्रा भाड़ा एक लाख था जिसमें से हाजियों से प्रति यात्री सिर्फ 16 हजार ही वसूले गए, शेष धनराशि सरकारी कोष से दी गई।

उच्चतम न्यायालय एवं संसदीय समितियां इस सब्सिडी को बंद करने का केंद्र सरकार को एकदर्जन बार निर्देश दे चुकी हैं मगर भारत सरकार के कानों पर जूं तक नहीं रेंगी।

  • विश्व भर में भारत ही एकमात्र ऐसा देश है जहां पर हज यात्रा के लिए सब्सिडी दी जाती है।
  • किसी भी मुस्लिम देश में कोई भी सब्सिडी हाजियों को नहीं दी जाती।
  • पाकिस्तान हाजियों को सब्सिडी नहीं देता।
  • क्‍या यह सरकार के सेकुलरवादी स्वरूप के खिलाफ नहीं?

सरकार पाकिस्तान जाने वाले सिख यात्रियों या कटास राज की यात्रा और कैलाश मानसरोवर जाने वाले को एक पैसा भी सब्सिडी क्‍यों नहीं देती? क्‍या यह मुस्लिम तुष्टिकरण और हिन्दू-सिखों के साथ भेदभाव नहीं। भारत का संविधान बिना धार्मिक भेदभाव के सभी नागरिकों को एक समान मानता है, तो फिर यह भेदभाव क्‍या संविधान का उल्लंघन नहीं?

हाजियों को सब्सिडी देने का सिलसिला 1950 से शुरू हुआ। जब सरकार ने मुंबई से जलयानों द्वारा हाजियों को सऊदी अरब ले जाने वाले 'मुगल लाइन्स' नामक शिपिंग कम्‍पनी का राष्ट्रीयकरण किया। तब सब्सिडी की धनराशि सिर्फ चार करोड़ ही थी। अब जलयानों द्वारा हज यात्रा सरकार ने बंद कर दी है मगर विमान यात्रियों को सब्सिडी देने का सिलसिला जारी है।

1990 तक हाजी मुंबई से हज पर जाते थे मगर अब 27 जगहों से विशेष विमान हज यात्रियों को लेकर जाते हैं। भारत सरकार सऊदी अरब में हाजियों के लिए ठहरने के अतिरिक्‍त फ्री चिकित्सा व्यवस्था भी करती है। आजादी से पूर्व निजाम हैदराबाद द्वारा हर वर्ष 5 हजार यात्रियों को सरकारी खर्च पर हज यात्रा के लिए भेजा जाता था। इसके अतिरिक्‍त देश की चौदह मुस्लिम रियासतों ने मक्‍का मदीना में राबात बना रखे थे, जहां पर हाजी मुफ्त ठहर सकते थे। अब यह व्यवस्था केन्द्र ने खत्म कर दी है।

हर वर्ष सरकार सारा खर्चा खुद दे कर 200-250 सरकार के करीबी मुस्लिम नेताओं को गुड-विल-मिशन के रूप में सऊदी अरब भिजवाती है। उच्चतम न्यायालय ने इसे न भेजने का सरकार को निर्देश दिया था, मगर यह सिलसिला अब भी जारी है। इस साल राज्य सभा के उप सभापति के. रहमान खान के नेतृत्व में सद्भावना मिशन भेजा गया था।

हज यात्रा की व्यवस्था करने के लिए केंद्र सरकार के विदेश विभाग की एक विशेष शाखा है जिसका प्रभारी संयुक्‍त सचिव दर्जे का वरिष्ठ अधिकारी होता है। इसके अतिरिक्‍त एक केन्द्रीय हज समिति है जिसका चेयरमैन सत्तारूढ़ दल का कोई नेता बनाया जाता है। इन दिनों इस कमेटी की अध्यक्ष कांग्रेस की महामंत्री मोहसिना किदवई हैं। इसके अतिरिक्‍त प्रत्येक राज्य में एक राज्य स्तर की हज समिति है। हर राज्य में हज मंजिल है जिसमें सऊदी अरब रवाना होने से पूर्व हाजियों एवं उनके परिवारजनों को सरकारी खर्च पर अतिथि के रूप में ठहराया जाता है। क्‍या यह सुविधा किसी हिंदू संप्रदाय से संबंध रखने वाले व्यक्ति को प्राप्त है? (क्रमश:)

Tuesday, December 6, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (30)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (30)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 30-11-2011

इस विधेयक के मसौदे को जिस तरीके से तैयार किया गया है उससे साफ है कि यह कुछ उन कथित सामाजिक कार्यकर्ताओं का काम है जिन्होंने गुजरात के अनुभव से यह सीखा है कि वरिष्ठ नेताओं को किसी ऐसे अपराध के लिए कैसे घेरा जाये, जो उन्होंने किया ही नहीं।

इस विधेयक के तहत जिन अपराधों की परिभाषा की गई है उन्हें जानबूझकर अस्पष्ट छोड़ दिया गया है। साम्‍प्रदायिक और किसी वर्ग को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा का तात्पर्य राष्ट्र के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को नष्ट करना है। धर्मनिरपेक्षता के मामले में कुछ उचित मतभेद हो सकते हैं। धर्मनिरपेक्षता एक ऐसा जुमला है जिसका अर्थ अलग-अलग लोगों द्वारा अलग-अलग बताया जाता है। आखिर किस परिभाषा के आधार पर अपराध का निर्धारण किया जायेगा? इसी तरह सवाल यह भी है कि शत्रुतापूर्ण माहौल बनाने से कोई ठोस निर्णय लेने के लिए काफी गुंजाइश है कि शत्रुतापूर्ण माहौल का आशय क्‍या है।

इस प्रकार के कानून के अनिवार्य परिणाम ये होंगे कि किसी भी तरह के साम्‍प्रदायिक संघर्ष में बहुसंख्‍यक समुदाय को ही दोषी के रूप में देखा जाएगा। दोष की सम्‍भावना तब तक बनी रहेगी जब तकदोष सिद्ध नहीं हो जाता। इस कानून के तहत बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य को ही दोषी ठहराया जायेगा। अल्पसंख्‍यक समुदाय का कोई भी सदस्य घृणा संबंधी प्रचार या साम्‍प्रदायिक हिंसा का अपराध कभी नहीं कर सकता। वास्तव में इस कानून के तहत उसे निर्दोष बताने का वैधानिक उपबंध है। केन्द्र और राज्य स्तर पर निर्धारित संवैधानिक व्यवस्था को संस्थागत पूर्वाग्रह से निश्चय ही नुक्‍सान होगा। इसका सदस्यता संबंधी ढांचा जाति और समुदाय पर आधारित है।

जो कानून तैयार किया गया है उसे लागू करते ही भारत में समुदायों के बीच आपसी रिश्तों में कटुता-वैमनस्यता फैल जायेगी। यह एक ऐसा कानून है जिसके खतरनाक दुष्परिणाम होंगे। यह तय है कि इसका दुरुपयोग किया जायेगा। शायद इस कानून का ऐसा मसौदा तैयार करने के पीछे यही उद्देश्य भी है। इससे अल्पसंख्‍यक साम्‍प्रदायिकता को प्रोत्साहन मिलेगा। कानून में समानता और निष्पक्षता के मूल सिद्धांतों का उल्लंघन किया गया है। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद् में सामाजिक कार्यकर्ताओं से यह आशा की जा सकती है कि वे ऐसा खतरनाक और भेदभावपूर्ण कानून का मसौदा तैयार करें। यह आश्चर्य की बात है कि उस निकाय के राजनीतिक प्रमुख ने इस मसौदे को स्वीकृति कैसे प्रदान की। जब कुछ व्यक्तियों ने टाडा-आतंकवाद विरोधी कानून के खिलाफ एक अभियान चलाया था, तो संप्रग के सदस्यों ने यह तर्क दिया था कि आतंकवादियों पर भी साधारण कानूनों के तहत मुकद्दमा चलाया जा सकता है। इससे अधिक कठोर कानून अब बनाया जा रहा है।

राज्य निराश होकर इस बात को देख रहे हैं कि जब केन्द्र सरकार इस प्रकार का गलत कदम उठाने जा रही है, उनकी शक्तियों को हड़पा जा रहा है। साम्‍प्रदायिक सौहार्द निष्पक्षता से प्राप्त किया जा सकता है न कि इसके विपरीत भेदभाव पैदा करके।

केन्द्र उन निरंकुश शक्तियों को फिर से प्राप्त करना चाहता है, जो बोम्‍मई मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले से पहले धारा 356 के तहत उसके पास थीं। बोम्‍मई मामले में पहले केन्द्र सरकार धारा 356 का इस्तेमाल कर निर्वाचित राज्य सरकारों को बर्खास्त कर राष्ट्रपति शासन लागू कर देती थी। इंदिरा गांधी शासन से लेकर राजीव गांधी शासन तक विपक्ष की कई राज्य सरकारों को बर्खास्त किया जाता रहा। 1950 में संविधान लागू होने से लेकर 1994 में सर्वोच्च न्यायालय के बोम्‍मई फैसले तक सरकार ने 102 बार धारा 356 का इस्तेमाल किया। इनमें से 77 मामलों में केन्द्र में कांग्रेस पार्टी का शासन था। इंदिरा जी ने इस प्रावधान का 50 बार इस्तेमाल किया। धारा 356 का दुरुपयोग इस हद तक बढ़ गया कि मजबूर होकर सर्वोच्च न्यायालय को बोम्‍मई मामले में निर्णय देकर इस पर रोक लगानी पड़ी।

सर्वोच्च न्यायालय ने कहा कि धारा 356 की उद्घोषणा न्यायिक पुनर्विचार के दायरे में आएगी और अदालत फैसला करेगी कि इसे लागू करने के पीछे कोई दुर्भावना तो नहीं है। सर्वोच्च न्यायालय ने यह भी कहा कि अगर राष्ट्रपति द्वारा किया गया फैसला दुर्भावनाग्रस्त पाया जाता है तो अदालत फैसला बदल भी सकती है। ऐसा लगता है कि क्षेत्रीय दलों की बढ़ती ताकत से घबराई कांग्रेस साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक के माध्यम से धारा 356 को चोर दरवाजे से फिर से लागू करना चाहती है।(क्रमश:)

Monday, December 5, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (29)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (29)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 29-11-2011

साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा रोकथाम विधेयक में बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्यों को दोषी माना जाएगा। बहुसंख्‍यक अर्थात हिन्दुओं को दोषी बनाने वाला शब्‍द है 'समूह'। विधेयक के प्रारूप में समूह की परिभाषा में इसका तात्पर्य पंथक या भाषायी अल्पसंख्‍यकों से है। इस कानून के अनुसार'समूह' अर्थात् अल्पसंख्‍यक समुदाय के किसी भी सदस्य के खिलाफ किसी प्रकार का सामाजिक अपराध तो दंडनीय है मगर किसी भी अल्पसंख्‍यक द्वारा किसी बहुसंख्‍यक अर्थात हिन्दू पर किया गया साम्‍प्रदायिक अपराध दंडनीय नहीं माना जाएगा। विधेयक के प्रारूप में बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को 'समूह' में नहीं लिया गया और इस कानून के नियम केवल इस कानून में परिभाषित 'समूह' के सदस्यों पर ही लागू होंगे।

भारतीय संविधान में किसी भी आरोपी को तब तक निर्दोष माना जाता है जब तक अदालत में उसका दोष सिद्ध नहीं हो जाता मगर इस कानून में किसी व्यक्ति पर आरोप लगाना है तो उसे तब तकदोषी माना जाएगा जब तक वह अपने को निर्दोष साबित नहीं कर देता।

  • कानून में धर्म या जाति के आधार पर भेदभाव क्‍यों किया गया?
  • अपराध तो अपराध है चाहे वह किसी समुदाय के व्यक्ति ने किया हो।
  • 21वीं शताब्‍दी में एक ऐसा कानून बनाया जा रहा है जिसमें किसी अपराधी की जाति और धर्म उसको अपराध से मुक्त ठहराता है।
  • यह अंधा कानून है, काला कानून है।

विधेयक में साम्‍प्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति के लिए एक सात सदस्यीय राष्ट्रीय प्राधिकरण होगा। इन 7 सदस्यों में से कम से कम चार सदस्य (जिसमें अध्यक्ष और उपाध्यक्ष भी शामिल हैं) समूह अर्थात् अल्पसंख्‍यक समुदाय से होंगे। इसी तरह का एक प्राधिकरण राज्यों के स्तर पर भी गठित होगा। अत: इस निकाय की सदस्यता धार्मिक और जातीय आधार के अनुसार होगी। इस कानून के तहत अभियुक्त केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के ही होंगे। अधिनियम का अनुपालन एक ऐसी संस्था द्वारा किया जाएगा, जिसमें निश्चित ही बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य अल्पमत में होंगे। सरकारों को इस प्राधिकरण को पुलिस और दूसरी जांच एजेंसियां उपलब्‍ध करानी होंगी। इस प्राधिकरण को किसी शिकायत पर जांच करने, किसी इमारत में घुसने, छापा मारने और खोजबीन करने का अधिकार होगा और वह कार्यवाही करने, अभियोजन के लिए कार्यवाही रिकार्ड करने के साथ-साथ सरकारों से सिफारिशें करने में भी सक्षम होगा। उसके पास सशस्त्र बलों से निपटने की शक्ति होगी। वह केन्द्र और राज्य सरकारों को परामर्श जारी कर सकेगा। इस प्राधिकरण के सदस्यों की नियुक्ति केन्द्रीय स्तर पर एककोलेजियम द्वारा होगी, जिसमें प्रधानमंत्री, गृहमंत्री और लोकसभा में विपक्ष के नेता और प्रत्येक मान्यता प्राप्त राजनीतिक पार्टी का एक नेता शामिल होगा। राज्यों के स्तर पर भी ऐसी ही व्यवस्था होगी। अत: केन्द्र और राज्यों में इस प्राधिकरण के गठन में विपक्ष की बात को तरजीह दी जायेगी।

इस अधिनियम के तहत जांच के लिए जो प्रक्रिया अपनाई जाएगी वह असाधारण है। भारतीय दंड संहिता की धारा 161 के तहत कोई बयान दर्ज नहीं किया जायेगा। पीडि़त के बयान केवल धारा 164 के तहत होंगे अर्थात अदालतों के सामने। सरकार को इस कानून के तहत संदेशों और टेली-कम्‍युनिकेशन को बाधित करने और रोकने का अधिकार होगा। अधिनियम के खंड 74 के तहत यदि किसी व्यक्ति के ऊपर घृणा संबंधी प्रचार का आरोप लगता है तो उसे तब तक पूर्वधारणा के अनुसार दोषी माना जायेगा जब तक वह निर्दोष सिद्ध नहीं हो जाता। साफ है कि आरोप सबूत के समान होगा। इस विधेयक के खंड 67 के तहत लोकसेवकों के खिलाफ मामला चलाने के लिए सरकार से अनुमति लेने की आवश्यकता नहीं होगी। मुकद्दमे की कार्यवाही चलाने वाले विशेष सरकारी अभियोजन सत्य की सहायता के लिए नहीं,अपितु पीडि़त के हित में काम करेंगे। शिकायतकर्ता पीडि़त का नाम और उसकी पहचान गुप्त रखी जाएगी। मामले की प्रगति रपट पुलिस शिकायतकर्ता को बताएगी। संगठित साम्‍प्रदायिक और किसी समुदाय को लक्ष्य बनाकर की जाने वाली हिंसा इस कानून के तहत राज्य के भीतर आन्तरिक उपद्रव के रूप में देखी जायेगी। इसका यह अर्थ है कि केन्द्र सरकार ऐसी दशा में अनुच्छेद 355 का इस्तेमाल कर संबंधित राज्य में राष्ट्रपति शासन लगाने में सक्षम होगी। (क्रमश:)

Sunday, December 4, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (28)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (28)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 28-11-2011

''सिंध श्रोत से हिन्दू सिंधु तक रहते आए हैं

इस धरती को मां कहते जो हिन्दू उनको कहते हैं

हिन्दू उनको कहते हैं, हम हिन्दू उन्हें ही कहते हैं

सम्‍प्रदाय हो चाहे जो भी, पूजा का कुछ ढंग रहे

प्रांत, जाति का प्रश्र नहीं, कुछ काला-गोरा रंग रहे

सब समाज अपनापन हो, सुख-दु:ख में नित संग रहे

राष्ट्र देह परिपुष्ट बनाने, जुटे सदा जो अंग रहे

मिलकर बढ़ते चरम शिखर तक, मिल कर संकट सहते हैं

इस धरती को मां कहते, हम हिन्दू उन्हें ही कहते हैं

एक हमारा रक्त, रक्त में एक भारती धारा है

एक हमारा शील, शील में एक भरी मर्यादा है

आजादी है बसी प्राण में, प्राण योग से बांधा है

भौतिकता के मस्त गजों को, संयम द्वारा साधा है

मानवता के अडिग उपासक, दानवता को दहते हैं

इस धरती को मां कहते हैं हम हिन्दू उन्हीं को कहते हैं।''

हिन्दुओं के देश में हमेशा से भेदभाव होता आया है। उसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह जताया है। साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक को लेकर श्री जेतली कहते हैं कि साम्‍प्रदायिक हिंसा के दौरान किए गए अपराध कानून और व्यवस्था की समस्या होती है। कानून और व्यवस्था की स्थिति से निपटना स्पष्ट रूप से राज्य सरकारों के क्षेत्राधिकार में आता है। केन्द्र और राज्यों के बीच शक्तियों के विभाजन में केन्द्र सरकार को कानून और व्यवस्था संबंधी मुद्दों से निपटने का कोई प्रत्यक्ष प्राधिकार प्राप्त नहीं है; न तो उनसे निपटने के लिए उसके पास प्रत्यक्ष शक्ति प्राप्त है और न ही वह इस विषय पर कानून बना सकती है। केन्द्र सरकार का क्षेत्राधिकार इसे सलाह, निर्देश देने और धारा 356 के तहत यह राय प्रकट करने तक सीमित करता है कि राज्य सरकार संविधान के अनुसार काम कर रही है या नहीं। इस प्रस्तावित विधेयक द्वारा ही केन्द्र सरकार राज्यों के अधिकारों को हड़प लेगी और वह राज्यों के क्षेत्राधिकार में आने वाले विषयों पर कानून बना सकेगी।

भारत धीरे-धीरे और अधिक सौहार्दपूर्ण अन्तर-समुदाय संबंधों की ओर बढ़ रहा है। जब कभी भी छोटा सा साम्‍प्रदायिक अथवा जातीय दंगा होता है, तो उसकी निंदा हेतु एक राष्ट्रीय विचारधारा तैयार हो जाती है। सरकारें, मीडिया, अन्य संस्थाओं सहित न्यायालय अपना-अपना कर्त्तव्य निभाने के लिए तैयार हो जाते हैं। नि:संदेह साम्‍प्रदायिक तनाव या हिंसा फैलाने वालों को दंडित किया जाना चाहिए तथापि इस प्रारूप विधेयक में यह मान लिया गया है कि साम्‍प्रदायिक समस्या केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्यों द्वारा ही पैदा की जाती है और अल्पसंख्‍यक समुदाय के सदस्य कभी ऐसा नहीं करते अत: बहुसंख्‍यकसमुदाय के सदस्यों द्वारा अल्पसंख्‍यक समुदाय के लोगों के खिलाफ किए गए साम्‍प्रदायिक अपराध तो दंडनीय हैं। अल्पसंख्‍यक समूहों द्वारा बहुसंख्‍यक समुदाय के खिलाफ किए गए ऐसे अपराध कतई दंडनीय नहीं माने गए हैं। अत: इस विधेयक के तहत यौन संबंधी अपराध इस हालात में दंडनीय है यदि वह किसी अल्पसंख्‍यक 'समूह' के किसी व्यक्ति के विरुद्ध किया गया हो।

किसी राज्य में बहुसंख्‍यक समुदाय के किसी व्यक्ति को 'समूह' में शामिल नहीं किया गया है। अल्पसंख्‍यक समुदाय के विरुद्ध 'घृणा संबंधी प्रचार' को अपराध माना गया है जबकि बहुसंख्‍यक समुदाय के मामले में ऐसा नहीं है। संगठित और लक्षित हिंसा, 'घृणा संबंधी प्रचार', ऐसे व्यक्तियों को वित्तीय सहायता, जो अपराध करते हैं, यातना देना या सरकारी कर्मचारियों द्वारा अपनी ड्यूटी में लापरवाही, ये सभी उस हालात में अपराध माने जायेंगे यदि वे अल्पसंख्‍यक समुदाय के किसी सदस्य के विरुद्ध किये गये हों अन्यथा नहीं। बहुसंख्‍यक समुदाय का कोई भी सदस्य कभी भी पीडि़त नहीं हो सकता।

विधयेक का यह प्रारूप अपराधों को मनमाने ढंग से पुनर्परिभाषित करता है। अल्पसंख्‍यकसमुदाय का कोई भी सदस्य इस कानून के तहत बहुसंख्‍यक समुदाय के विरुद्ध किए गए किसी अपराध के लिए दंडित नहीं किया जा सकता। केवल बहुसंख्‍यक समुदाय का सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकता है और इसलिए इस कानून का विधायी मंतव्य यह है कि चूंकि केवल बहुसंख्‍यक समुदाय के सदस्य ही ऐसे अपराध कर सकते हैं, अत: उन्हें ही दोषी मानकर उन्हें दंडित किया जाना चाहिए। यदि इसे ऐसे स्वरूप में लागू किया जाता है, जैसा कि इस विधेयक में प्रावधान है, तो इसका भारी दुरुपयोग हो सकता है। इससे कुछ समुदायों के सदस्यों को ऐसे अपराध करने की प्रेरणा मिलेगी और इस तथ्य से वे और उत्साहित होंगे कि उनके विरुद्ध कानून के तहत कोई आरोप तो कभी लगेगा ही नहीं। आतंकी ग्रुप अब आतंकी हिंसा नहीं फैलाएंगे। उन्हें साम्‍प्रदायिक हिंसा फैलाने में प्रोत्साहन मिलेगा क्‍योंकि वे यह मानकर चलेंगे कि जेहादी ग्रुप के सदस्यों को इस कानून के अन्तर्गत दंडित नहीं किया जाएगा।(क्रमश:)

Saturday, December 3, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (27)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (27)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 27-11-2011

अब साम्‍प्रदायिक और लक्षित हिंसा विधेयक लाकर यूपीए सरकार साम्‍प्रदायिक हिंसा को रोकना चाहती है। इस विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप पर मेरी विभिन्न लोगों से चर्चा हुई। राज्यसभा में विपक्ष के नेता और मेरे मित्र अरुण जेतली से भी इस विधेयक पर गहन चर्चा हुई, जिसे मैं पाठकों के समक्ष प्रस्तुत करना चाहता हूं।

जेतली जी का मानना है कि प्रकट रूप से विधेयक का प्रारूप देश में साम्‍प्रदायिक हिंसा को रोकने और इस संबंध में दंड दिये जाने के प्रयास के तौर पर नजर आता है। यद्यपि स्पष्ट रूप से प्रस्तावित कानून का यह मंतव्य है, तथापि इसका असल मंतव्य इसके विपरीत है। यह एक ऐसा विधेयक है कि यदि यह कभी पारित हो जाता है तो यह भारत के संघीय ढांचे को नष्ट कर देगा और भारत में अंतर-सामुदायिक संबंधों में असंतुलन पैदा कर देगा।

विधेयक का सबसे महत्वपूर्ण पहलू है 'समूह की परिभाषा'। समूह से तात्पर्य पंथक या भाषायी अल्पसंख्‍यकों से है, जिसमें आज की स्थितियों के अनुरूप अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों को भी शामिल किया जा सकता है। विधेयक के दूसरे चैप्टर में नये अपराधों का एक पूरा सैट दिया गया है। खंड 6 में यह स्पष्ट किया गया है कि इस विधेयक के अन्तर्गत अपराध उन अपराधों के अलावा है जो अनुसूचित जाति एवं जनजाति (अत्याचार निवारण) अधिनियम, 1989 के अधीन आते हैं। क्‍या किसी व्यक्ति को एक ही अपराध के लिए दो बार दंडित किया जा सकता है? खंड 7 में निर्धारित किया गया है कि किसी व्यक्ति को उन हालात में यौन संबंधी अपराध के लिए दोषी माना जायेगा यदि वह किसी'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के, जो उस समूह का सदस्य है, विरुद्ध कोई यौन अपराध करता है। खंड 8 में यह निर्धारित किया गया है कि 'घृणा संबंधी प्रचार' उन हालात में अपराध माना जायेगा जब कोई व्यक्ति मौखिक तौर पर या लिखित तौर पर या स्पष्टतया अभ्‍यावेदन करके किसी 'समूह' अथवा किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति के विरुद्ध घृणा फैलाता है। खंड 9 में साम्‍प्रदायिक तथा लक्षित हिंसा संबंधी अपराधों का वर्णन है। कोई भी व्यक्ति अकेले या मिलकर या किसी संगठन के कहने पर किसी 'समूह' के विरुद्ध कोई गैर-कानूनी कार्य करता है तो वह उसे संगठित साम्‍प्रदायिक एवं लक्षित हिंसा के लिए दोषी माना जाएगा। खंड 10 में उस व्यक्ति को दंड दिए जाने का प्रावधान है, जो किसी 'समूह' के खिलाफ किसी अपराध को करने अथवा उसका समर्थन करने हेतु पैसा खर्च करता है या पैसा उपलब्‍ध कराता है। यातना दिये जाने संबंधी अपराध का वर्णन खंड 12 में किया गया है, जिसमें कोई सरकारी कर्मचारी किसी 'समूह' से संबंध रखने वाले व्यक्ति को पीड़ा पहुंचाता है या मानसिक अथवा शारीरिक चोट पहुंचाता है। खंड 13 में किसी सरकारी व्यक्ति को इस विधेयक में उल्लिखित अपराधों के संबंध में अपनी ड्यूटी निभाने में ढिलाई बरतने के लिये दंडित किये जाने का प्रावधान है। खंड 14 में उन सरकारी व्यक्तियों को दंड देने का प्रावधान है जो सशस्त्र सेनाओं अथवा सुरक्षा बलों पर नियंत्रण रखते हैं और अपनी कमान के लोगों पर कारगर ढंग से अपनी ड्यूटी निभाने हेतु नियंत्रण रखने में असफल रहते हैं। खंड 15 में प्रत्यायोजित दायित्व का सिद्धांत दिया गया है। किसी संगठन का कोई वरिष्ठ व्यक्ति अथवा पदाधिकारी अपने अधीनस्थ कर्मचारियों पर नियंत्रण रखने में नाकामयाब रहता है, तो यह उस द्वारा किया गया एक अपराध माना जाएगा। वह उस अपराध के लिए प्रत्यायोजित रूप से उत्तरदायी होगा जो कुछ अन्य लोगों द्वारा किया गया है। खंड 16 के मुताबिक वरिष्ठ अधिकारियों के आदेशों को इस धारा के अंतर्गत किये गए किसी अपराध के बचाव के रूप में नहीं माना जाएगा।(क्रमश:)

Thursday, December 1, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (26)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (26)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 26-11-2011

''ऐ रहबरे मुल्को कौम बता

ये किसका लहू है, कौन मरा?''

बात 1984 की है। प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या के बाद सारे राष्ट्र में दंगे भडक़ उठे थे। सिखों पर हमले किए गए। नग्न आंखों से क्रूरता का यह तांडव सभी ने देखा। अकेले दिल्ली शहर में मृतकों की संख्‍या 2733 बताई गई मगर सत्य कुछ और ही था। पूरे राष्ट्र ने देखा, यह कांग्रेस प्रायोजित आतंकवाद था। कई आयोग बने, लेकिन नानावती कमीशन की रिपोर्ट आज तक सार्वजनिक नहीं की गई अगर कांग्रेस में हिम्‍मत थी तो कपूर-मित्तल की रिपोर्ट को सार्वजनिक क्‍यों नहीं किया गया। कभी जैन-बनर्जी कमेटी के पर कतरे गए, कभी जैन-अग्रवाल कमेटी की रिपोर्टें झूठी याचिकाओं के बल पर सार्वजनिक नहीं होने दीं। कभी पोटी-रोशा कमेटी गर्भ में ही भ्रूण हत्या का शिकार हुई। दंगों के दौरान एक वृद्ध सिख की विधवा की याचिका पर तत्कालीन न्यायमूर्ति अनिल देव सिंह ने जब फैसला दिया तो सभी की आंखें खुल गईं। यह दिल्ली हाईकोर्ट की बात है।

''अपनी ही मातृभूमि में अपने ही लोगों द्वारा नृशंसतापूर्वक कत्ल किए जाने की घटनाओं की वेदना की बात सोचने से अनुभव होता है कि क्‍या ऐसे लोग जंगली जानवरों से बदतर नहीं हैं?''

आज मैं उस कविता की पंक्तियों को लिखना चाहूंगा जो उस फैसले का हिस्सा हैं, जो कविता रवीन्द्रनाथ टैगोर ने रची और जिसका भाव है कि जंगली जानवरों के साथ एकांत विचरण करने वाले को भी उतना भय शायद महसूस न हो, जितना इन दो पाये दरिन्दों के साथ तब इन्सान को था।

कविता को देखें-

“If I 2ere the soil. I 2ere the 2ater if I 2ere the grass or fruit or flo2er if I 2ere to roam about the earth 2ith beasts there 2ould be nothing to fear, in ne1er ending ties 2here e1er I go, It 2ill be the limitless me”.

जब न्यायालयों के फैसलों में ऐसी बातें आ चुकी हैं, तो जांच आयोगों की रिपोर्टों की क्‍या कीमत? जांच तो रंगनाथ मिश्र ने भी की थी। सच तो उन्होंने भी बोलने की शुरूआत की थी, लेकिन वाह रे राज्यसभा का सत्ता सुख, एक अवकाश प्राप्त न्यायाधीश की सारी गरिमा धूल धूसरित हो गई। सब जानते हैं कि वह कौन से बेइमान, भ्रष्ट और कर्त्तव्यहीन अधिकारी थे जो अपने आकाओं के बल पर दंगे करवाने को ही अपना कर्त्तव्य समझ रहे थे।

कौन थे इनके आका। दंगाइयों को किसने छूट दी? पुलिस मौन दर्शक क्‍यों बनी रही? कांग्रेस ने सत्य के साथ छल किया।

कांग्रेस ने देश की विभिन्न जातियों में अविश्वास पैदा कर अपना उल्लू सीधा किया। इस पर मुझे एक प्रसंग याद आ रहा है-

राजकुमार और नगर सेठ के बेटे की दोस्ती से मगध नरेश बहुत दु:खी थे। लाख प्रयास के बावजूद दोनों की दोस्ती टूट नहीं रही थी। राजकुमार को गलत संगत से बचाने के लिए राजा ने मंत्रियों से सलाह ली और फिर इस काम के लिए उन्होंने सबसे चतुर मंत्री को लगाया। एक दिन राजकुमार और नगर सेठ के बेटे बातचीत में मशगूल थे। इतने में मंत्री जी आए और इशारे से राजकुमार को अपने पास बुलाया। मंत्री ने राजकुमार से कुछ कहा और फिर वे वापस लौट गए। मंत्री के जाने के बाद नगर सेठ के बेटे ने राजकुमार से मंत्री के आने का उद्देश्य पूछा पर राजकुमार ने कुछ नहीं बताया। दूसरे दिन इसी तरह मंत्री जी फिर आए और इस बार नगर सेठ के बेटे को बुलाकर कुछ कहा। फिर चलते बने। राजकुमार ने भी अपने मित्र से मंत्री से हुई बात के बारे में पूछा पर नगर सेठ के बेटे ने कुछ नहीं बताया। इस घटना के बाद दोनों के बीच अविश्वास का वातावरण पैदा हो गया। मंत्री जी अपनी चाल में कामयाब हो गए क्‍योंकि उन्होंने दोनों को बुलाकर कुछ भी नहीं कहा था। सिर्फ अविश्वास पैदा करने की नीयत से अपने पास बुलाया था। राजा को दोनों की मित्रता टूटने की खबर से अत्यधिक प्रसन्नता हुई क्‍योंकि जो कार्य साम, दाम, दंड से नहीं होता वह काम अविश्वास पैदा करने से हुआ। कांग्रेस सरकारों ने हमेशा ही जातियों में अविश्वास पैदा कर सत्ता तक का सफर तय किया। बाकी चर्चा मैं कल करूंगा।(क्रमश:)

Wednesday, November 30, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (25)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (25)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 25-11-2011

वेदों में बार-बार कहा गया है कि मनुष्य बनो, अच्छे मनुष्य बनो लेकिन हमने मनुष्य को बांट दिया। जो नास्तिक है धर्म तो उसके लिए भी है, ईश्वर ने सभी के लिए हवा बनाई है, सभी के लिए सूर्य बनाया है। उसने किसी को अलग नहीं किया। यदि वह किसी से विभेद करना चाहता तो अलग सूर्य, हवा और पानी बनाता। जो वेद-उपनिषद की धारा से खुद को जोड़ सके वही हिन्दू है। ऐसे कितने लोग हैं, जो इन बातों पर विश्वास करते हैं। जब सभी एक-दूसरे से जुड़ेंगे तो ही कुछ होने का अर्थ निकलेगा। सदियां बदल जाने से हिन्दू होने का अर्थ नहीं बदल जाता लेकिन मैं यहां भी कहना चाहता हूं कि हिन्दुओं को आघात देश के कुछ हिन्दुत्व के होलसेल डीलरों ने भी पहुंचाया वहीं कांग्रेस ने अपनी धर्मनिष्ठा और चरित्र ही बदल दिया। बाकी सभी जातिवादी राजनीति का ढिंढोरा पीटते रहे।

बात महात्मा गांधी से संबंध रखती है। कांग्रेस का 26वां अधिवेशन मद्रास में हो रहा था। महात्मा गांधी की रुचि उन दिनों अध्यात्म में अधिक थी, परन्तु फिर भी वह लोगों की बात मानकर ऐसे अधिवेशनों में चले जाया करते थे। एक दिन शाम के समय अयंगर महोदय एक मशविरा लेकर आए जिसका ताल्लुक हिन्दू-मुस्लिम समझौतों को लेकर था।

बापू ने कहा- ''आपसी सौहार्द से बड़ी बात क्‍या है? समझौता किसी भी शर्त पर हो, यह अच्छी बात है।'' अयंगर महोदय चले गए। रात को बापू ने पूरे प्रस्ताव का अध्ययन किया।

प्रात:काल होने पर बापू बड़े उद्विग्न नजर आए। उन्होंने महादेव देसाई को जगाया और काका कालेलकर को भी बुलाया और कहने लगे- ''रात को मुझ से बड़ी भूल हो गई। मैंने प्रस्ताव को एकसरसरी निगाह से देखकर उसे ठीक कह दिया था परन्तु उसमें तो मुस्लिम बंधुओं को गोवध की इजाजत देने का भी प्रावधान किया गया है। मैं तो 'स्वराज' की कीमत पर भी गोरक्षा का संकल्प नहीं छोड़ सकता। मुझे प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं, परिणाम जो भी हो इस भारत की भूमि पर जब तक गोरक्‍त की एकबूंद भी गिरेगी, यह राष्ट्र कभी शांति से नहीं रह सकता। प्रस्ताव रद्द हो गया। इसे कहते हैं धर्मनिष्ठा और इसे कहते हैं चरित्र। आजादी की लड़ाई लडऩे वाली कांग्रेस ने धर्मनिष्ठा और चरित्र को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्वधर्म समभाव भी है। मैंने इस पक्ष को इस नजरिये से देखा है मसलन हिन्दू धर्म को मानने वालों की बात करें। इस देश में इसी के अंग कश्मीर से तीन लाख लोग इसलिए निकाल दिए गए क्‍योंकि वह गीता और रामायण पढ़ते थे, मंदिरों में जाते थे, ओम नम: शिवाय का जाप करते थे। सभी ने मगरमच्छी आंसू बहाए, हिन्दुओं का दर्द किसी ने नहीं जाना।

1980 के दशक में जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से सारा पंजाब धू-धू कर जल उठा, राष्ट्र विरोधी ताकतों ने हिन्दू-सिखों के शाश्वत संबंधों पर कुठाराघात किया। बसों से उतार कर एक ही समुदाय के लोगों को मारा जाने लगा, तो हजारों हिन्दू परिवार पंजाब छोडक़र पलायन कर गए। आज इस घटना का जिक्र तक नहीं किया जाता। मैं पहले भी कहता आया हूं।

''जुनून हिन्दू का हो या हो जुनून मुस्लिम का

जब भी जलते हैं, गरीबों के घर जलते हैं।''

आइए गुजरात चलते हैं। गोधरा की घटना एक राजनीतिक षड्यंत्र था, जिसे राष्ट्रद्रोहियों ने रचा था, उस षड्यंत्र के तार सीमा पार से जुड़े थे, उनका उद्देश्य वही था, जिसमें वह सफल हुए। योजना के मुताबिक ट्रेन अग्रिकांड की घटना गोधरा के बदले चिंचलाव स्टेशन पर घटनी थी। चिंचलाव में इसे 100 गुणा ज्यादा वीभत्स बनाया जाना था। ट्रेनों के समय में विलम्‍ब के कारण यह कार्यक्रम बदला गया। 56 रामभक्त जिंदा जला दिए गए। अगर गोधरा कांड न होता तो दंगे भी नहीं होते।

''गोधरा में जो मरे, वो निरपराध थे,

बाद में जो मरे, वो भी निरपराध थे।''

मैंने स्वयं गोधरा के बाद हुए दंगों को हिन्दुत्व पर कलंक बताया था लेकिन कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने गोधरा ट्रेन नरसंहार को महज हादसा बताने का प्रयास किया। कई जांच आयोग बने। चुनावों के ठीक पहले ऐसी रिपोर्ट लीक की गई जिसने इस कांड को महज हादसा बताया। हिन्दू संगठनों को फासिस्ट करार दिया गया। कांग्रेस ने गांधी के गुजरात को गोडसे का गुजरात करार दिया। उसका उद्देश्य मुसलमानों को भडक़ा कर वोट प्राप्त करना था। श्रीमती सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस चुनाव अभियान की शुरूआत श्रीगणेश, अम्‍बा जी के मंदिर में दर्शन करके किया था। हिन्दुओं के वोट हड़पने के लालच में किए इस नाटक का क्‍या असर होना था, इसकी प्रतिक्रिया हिन्दू मतदाताओं पर कांग्रेस के विरुद्ध ही हुई। (क्रमश:)

Tuesday, November 29, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (24)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (24)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 24-11-2011

साम्‍प्रदायिकता तथा लक्षित हिंसा विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इस विधेयक के इरादे यही हैं कि अपना देश एक न रहे, समाज में सद्भाव समाप्त हो जाए, संविधान की भावना के उलट सभी कार्य हों। इस प्रारूप को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है, इस परिषद के संवैधानिक अधिकार क्‍या हैं? इस पर भी बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं। देश में लोकतंत्र है, संसद है, तो फिर हम तथाकथित सलाहकारों के जाल में क्‍यों फंस रहे हैं?

न्याय, संविधान आदि की अवहेलना करने वाला यह विधेयक क्‍या विचार करने योग्य है? इस विधेयक को तो रद्दी की टोकरी में डाल देना ही बेहतर है क्‍योंकि इस विधेयक के पीछे की राष्ट्र विरोधी,घृणित, षड्यंत्रकारी मानसिकता इस पहले प्रारूप में ही साफ हो गई है।

इस विधेयक को लेकर कुछ और बिन्दू स्पष्ट करना चाहूंगा :

  • विधेयक में प्रदेश में साम्‍प्रदायिक हिंसा होने पर कानून व्यवस्था के नाम पर केन्द्र सरकार को''हस्तक्षेप का अधिकार'' दिया गया है। यह भारतीय संविधान में ''संघीय चरित्र'' के विरुद्ध है। राज्यों में साम्‍प्रदायिक हिंसा के नाम पर केन्द्रीय हस्तक्षेप असंवैधानिक है।
  • विधेयक देश के सार्वभौम नागरिकों को अल्पसंख्‍यक (मुस्लिम) और बहुसंख्‍यक (हिन्दू) में बांटकर देखता है।
  • देश की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम 13.5 प्रतिशत, हिन्दू, सिख, इसाई 86.5 प्रतिशत हैं।
  • केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साम्‍प्रदायिक दंगों की संख्‍या में भारी गिरावट आई है।
  • यह विधेयक बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के लिए उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु,कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, असम, पुड्डुचेरी आदि में गले का फंदा बना है।
  • पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसाई बहुसंख्‍यक हैं।
  • विश्व के किसी भी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है।
  • कांग्रेस का कहना है कि साम्‍प्रदायिक दंगों के समय स्थानीय प्रशासन और पुलिस उनके साथ सही बर्ताव नहीं करती है। प्रशासन एवं पुलिस मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखती है, यह गलत है।
  • साम्‍प्रदायिक दंगों के लिए स्थानीय जिला प्रशासन और पुलिस को जवाबदेह बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, वाम मोर्चा, तीसरी शक्ति साम्‍प्रदायिक हिंसा को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्या मानती है।
  • विश्व के अधिकांश टीवी समाचार चैनलों पर धार्मिक समारोह रपट विरले ही प्रसारित की जाती है।
  • विपक्ष का आरोप है कि साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक में बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को ''खलनायक की भांति चित्रित किया गया है।''
  • कांग्रेस का आरोप है कि मीडिया शांति और सौहार्द स्थापना में रचनात्मक भूमिका अदा नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री डा. सिंह ने मीडिया को सौहार्द, शांति के लिए रचनात्मक कार्य करने की सलाह दी।
  • विपक्ष के अनुसार विधेयक के प्रावधान नागरिक स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त प्रावधानों का अतिक्रमण करते हैं। विधेयक नागरिकों को धर्म और जाति के नाम पर विभाजित करता है।
  • विधेयक के अनुसार हिन्दू, मुस्लिमों के लिए अलग-अलग आपराधिक दण्ड संहिता (फौजदारी कानून) होंगे। परिणामस्वरूप साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक हिन्दू बहुसंख्‍यकों के लिए भस्मासुर बनेगा। उसका दुरुपयोग होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
  • विधेयक से हिन्दू-मुस्लिमों में ''परस्पर अविश्वास'' और अधिक गहराएगा। अत: यह संविधान विरोधी साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक मसौदा खारिज किया जाए। वर्तमान में साम्‍प्रदायिक हिंसा से निपटने के अनेक सख्‍त कानून हैं उनका उपयोग क्‍यों नहीं किया जा रहा है? (क्रमश:)
यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...