क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (32)
अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 02-11-2011
भारतीय संविधान में हालांकि कानून की नजर में सभी नागरिक बराबर हैं मगर इस देश में विभिन्न धर्मावलम्बियों के लिए अलग-अलग कानून हैं। मुसलमानों के मामलों को तय करने के लिए शरियत अदालतें और दारूल कजा नामक उच्च स्तर की अदालतें हैं। इनमें मुसलमानों से सम्बन्धित मामले शरा मोहम्मदी की रोशनी में काजी तय करते हैं।
पंडित नेहरू की कृपा से 1952 में हिन्दू कोड बिल बनाया गया था, जिसमें तलाक की व्यवस्था की गई जो कि हिन्दू धर्म ग्रंथों के सर्वथा विपरीत थी। हाल में ही उच्चतम न्यायालय ने यह स्वीकार किया है कि भारतीय संसद ने आज तक जो कानून बनाए वह सिर्फ हिन्दू सम्प्रदाय तक ही सीमित थे। अन्य सम्प्रदायों के मामले में सरकार को कानून बनाने की हिम्मत नहीं हुई क्योंकि वह पर्सनल लॉ के मामले में काफी संवेदनशील हैं। सरकार उनके पर्सनल लॉ में हस्तक्षेप करने की हिम्मत नहीं करती।
उच्चतम न्यायालय कम से कम पांच बार और देश के विभिन्न उच्च न्यायालय एक दर्जन से अधिक बार देश के सभी वर्गों के लिए समान पर्सनल लॉ बनाने का निर्देश दे चुके हैं मगर सरकार के कानों पर आज तक जूं नहीं रेंगी क्योंकि उसे अल्पसं2यकों की नाराजगी का डर है।
शाहबानो केस में मुसलमानों के आक्रोश के कारण सरकार ने एक कानून बना डाला जिसके तहत यह तय किया गया कि मुसलमान महिलाओं को सीआरपीसी की धारा 125 के तहत तलाक देने के बाद पत्नियों को गुजारा भत्ता देने की कोई जरूरत नहीं। तर्क यह दिया गया कि शरई कानूनों के अनुसार इदत पीरियड में सिर्फ तीन महीनों के लिए पति के लिए गुजारा भत्ता देना ही काफी है।
दिल्ली के शाही इमाम अब्दुल्ला बुखारी के खिलाफ देश भर की अदालतों ने 216 बार वारंट जारी किए थे मगर एक बार भी दिल्ली पुलिस को इन वारंटों को तामील कराने की हिम्मत नहीं हुई। साफ है कि शाही इमाम देश के कानून और संविधान से बहुत ऊंचे हैं।
संसद ने हाल में ही अनिवार्य शिक्षा कानून पारित किया था मगर मुस्लिम नेताओं के विरोध के कारण अब सरकार ने इस मामले में घुटने टेक दिए हैं। मानव संसाधन मंत्री कपिल सिब्बल ने यह घोषणा की है कि यह क कानून मुस्लिम मदरसों पर लागू नहीं होगा। क्या यह कानून सिर्फ हिन्दुओं के लिए ही बनाया गया है? देश में दो करोड़ बंगलादेशी घुसपैठिए रह रहे हैं। गत दस वर्षों में इनमें से केवल दस हजार को ही विदेशी नागरिक करार देकर वापस बंगलादेश खदेड़ा गया। शेष बंगलादेशी इस देश में बिना बुलाए मेहमान होने के बावजूद मौज उड़ा रहे हैं।
हाल में ही मुरादाबाद के एक गांव में जब पुलिस एक अपराधी को पकडऩे के लिए गई तो गांव वालों ने उसकी गिरफ्तारी का विरोध किया और पुलिस पर हमला किया। बाद में स्थानीय मुसलमानों ने पुलिस पार्टी पर यह झूठा आरोप लगा दिया कि उन्होंने इस छापे के दौरान कुरान का अपमान किया है। उर्दू समाचारपत्रों ने इस मामले को खूब उछाला। उत्तर प्रदेश में जगह-जगह विरोध प्रदर्शन हुए, जिनसे भयभीत होकर सरकार ने घुटने टेक दिए और दोषी ठहराए गए पुलिस अधिकारियों को निलम्बित कर दिया गया। क्या यही न्याय है?
एक बात हम सबके लिए विचारणीय है कि क्यों 80 प्रतिशत के बहुमत की अवहेलना करके उसे एक सम्प्रदाय की भूमिका निभाने के लिए लाचार किया जाता है और क्यों 12 प्रतिशत के आसपास की जनसंख्या वाले मुस्लिम अल्पमत तथा 2 प्रतिशत के आसपास के अल्पमत को भी राष्ट्रीय महत्व दिया जाता है। संसार के किसी भी देश में 80 प्रतिशत के बहुमत वाली जनसंख्या को साम्प्रदायिक नहीं माना जाता। वह तो अपने आप में एक स्वस्थ एवं सबल राष्ट्र होने की सामथ्र्य रखती है, परन्तु हमारे यहां यह इसीलिए होता है कि 80 प्रतिशत हिन्दू बहुमत संगठित न होकर अलग-अलग पार्टियों को अपनी रुचि के अनुसार वोट देता है और मुस्लिम अल्पमत संगठित होकर हिन्दू के मुकाबले एकमुसलमान को वोट देकर उसे सफल बनाता है। मुसलमान के वोट किसी भी गैर मुसलमान को तब ही मिलते हैं जबकि मुसलमान चुनाव क्षेत्र में न हो।
मुस्लिम सम्प्रदाय वोट एक व्यक्ति या पार्टी को संगठित होकर डालता है, इसीलिए उसके वोट की कीमत आंकी जाती है। हिन्दुओं के वोट अब तक सेकुलर पार्टियों को ही मिलते रहे हैं और वह भी बंटकर, इसलिए उसके वोट का कोई महत्व नहीं रह जाता। हिन्दुओं में बहुत देर के बाद यह समझ आनी आरम्भ हुई है कि ये सेकुलर पार्टियां हिन्दुओं से वोट लेकर मुस्लिम साम्प्रदायिकता को पालपोस रही है, इसीलिए उनकी हर बात की महत्व होती है और हिन्दुओं की हर बात साम्प्रदायिक और देश विरोधी बन जाती है। उनकी यह जागरूकता ही इन सेकुलर पार्टियों का सिरदर्द है। अगर हिन्दुओं ने एकजुट होकर किसी भी हिन्दुत्वनिष्ठ पार्टी को वोट देकर राज्य सत्ता तक पहुंचा दिया फिर इसका क्या होगा? अब तक जो हिन्दू गलत प्रचार-साधनों, सत्ता बल और धनबल के द्वारा भरमाया जाता था वह अब शायद सम्भव नहीं रहा, इसीलिए ये सब सेकुलर पार्टियां हिन्दुत्वनिष्ठ नेताओं तथा पार्टियों के विरुद्ध अनर्गल प्रचार कर रही हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है जैसे अंग्रेज तथा मुस्लिम लीग कांग्रेस को दिन-रात हिन्दू संस्था बताते थे, क्योंकि इसी में उनका स्वार्थ सधता था और कांग्रेस हिन्दू विरोध की सीमा तकजाकर भी अपने को राष्ट्रीय संस्था बताती थी।
इन शब्दों के साथ मैं इस लम्बी लेखमाला को विराम देना चाहता हूं। अफसोस 125 करोड़ का यह मुल्क आज एक मोहताज सा हो गया है। देशवासियों को प्राचीन गौरव और परम्पराओं को याद रखना होगा और देश के हिन्दुओं को निर्णायक जंग के लिए एकजुट होना होगा।
''जब किसी जाति का अहं चोट खाता है
पावक प्रचंड होकर, बाहर आता है
यह वही चोट खाए स्वदेश का बल है
आहत भुजंग है, सुलगा हुआ अनल है।'' (समाप्त)