Sunday, December 7, 2008

"जनता का चंदन, घिसे नेता नन्दन"

राजनीतिज्ञ सामान्य देशवासियों की आतंकियों से रक्षा करने में असमर्थ सिध्द हुए हैं वे करदाता जनता के पैसे से सैकड़ों करोड़ रूपये अपनी स्वयं की रक्षा पर खर्च कर रहे हैं। इनकी रक्षा पर 250 करोड़ रूपए खर्च होता है। आतंक विरोधी राष्ट्रीय सुरक्षा दल के 7000 कमांडो में से 1700 इन राजनीतिज्ञों की सुरक्षा में लगे हैं। आई.टी.बी.पी., सी.आई.एस.एफ., सी.आर.पी.एफ., बी.एस.एफ. और सशस्त्र सुरक्षा बल आदि बलों का काफी बड़ा फिस्सा इन राजनीतिज्ञों की सुरक्षा में लगा है। इनके अतिरिक्त प्रधानमंत्री, पूर्व प्रधानमंत्रियों एवं सोनिया गांधी परिवार की सुरक्षा के लिए अलग से 'विशेष सुरक्षा दल' गठित किया गया है। 2007-08 में इस बल का बजट 117 करोड़ रूपए था जो 2008-09 में बढ़कर 180 करोड़ रूपए पहुंच गया है। जबकि करोड़ों देशवासियों की रक्षा का दायित्व जिस राष्ट्रीय सुरक्षा गार्ड पर है उसका बजट पिछले वर्ष के 159 करोड़ से घटकर 150 करोड़ रूपए रह गया है। इन केन्द्रीय सुरक्षाबलों के अलावा प्रत्येक राज्य अपनी पुलिस फोर्स को इन विशिष्ट लोगों की सुरक्षा में लगाता है। अकेले राजधानी दिल्ली में अति विशिष्ट लोगों की रात-दिन सुरक्षा में 14,200 पुलिसकर्मी लगे रहते हैं। टाइम्स आफ इंडिया का कहना है कि इनमें से अनेक राजनीतिज्ञों की सुरक्षा को कोई खतरा नहीं है, उन्होंने इन सुरक्षा प्रबंधों को अपनी प्रतिष्ठा का प्रतीक बना लिया है। स्वयं सुरक्षा के घेरे में बंद राजनीतिज्ञ आतंकियों द्वारा मारे गए लोगों के परिवारों के प्रति सहानुभूति के मगरमच्छी आंसू बहाते हुए जन कोष से उनको बड़े आर्थिक अनुदान और यदि संभव हुआ तो उनके परिवार के किसी व्यक्ति को सरकारी नौकरी देने की घोषणा कर देते हैं। स्पष्ट ही, क्योंकि कुछ भी उनकी जेब से नहीं जाता, यह मार भी जनता ही वहन करती है। राजनीतिज्ञों के इस दोहरे चेहरे के प्रति जनाक्रोश गहरा रहा है। दिल्ली उच्च न्यायालय राजनीतिज्ञों की सुरक्षा व्यवस्था के विरूध्द एक जनहित याचिका पर विचार कर रहा है। मुम्बई के जिहादी हमले में घायल होकर वहीं अस्पताल में भर्ती हरियाणा निवासी कमांडो सुनील के पिता रामकिशन ने दैनिक भास्कर से विशेष बातचीत में केरल के माकपाई मुख्यमंत्री अच्युतानंदन की टिप्पणी पर प्रतिक्रिया करते हुए कहा कि यह खेद की बात है कि जो राजनेता बिना सिक्युरिटी के चल नहीं सकते वे उन्हीं जवानों के बारे में इस तरह की बातें करते हैं जो उन्हें सुरक्षित रखते हैं। अगर केरल के मुख्यमंत्री वास्तव में खुद को शेर समझते हैं तो अपने चारों तरफ लगाए गये जवानों की सिक्योरिटी हटाकर रहें। (भास्कर 3 दिसंबर)। यहां यह स्मरण दिलाना उचित रहेगा कि 26 जुलाई, 2008 को अहमदाबाद के बम विस्फोट के बाद ही हमने दृश्य समाज का आत्मबल बढ़ाने के उद्देश्य से इन अतिविशिष्ट नेताओं से प्रार्थना की थी कि वे स्वयंमेव अपनी सुरक्षा व्यवस्था का परित्याग कर नव दधीचि का उदाहरण समाज के सामने प्रस्तुत करें, पर नक्कारखाने में तूती की आवाज कौन सुनता है। यहां तो इतना ही है कि 'जनता का चंदन, घिसे नेता नंदन।

2 comments:

Anil Kumar said...

धन्यवाद यह बताने के लिये कि कुछ सौ राजनेताओं की सुरक्षा में जितना पैसा खर्च होता है वह सारे भारत की सुरक्षा खर्च के बराबर है. यह एक बहुत ही पुख्ता सबूत है कि राजनेता भारत पर बोझ हैं.

Naveen Tyagi said...

vikaas ji aapki yah jankaaree kafee achhi hai. isme 1 saal me kuch aakdo ka her fer hua hai.me apne paxik samaachar patr me aapke is aalekh ko kuch aakde badal kar aapke naam se chhap raha hoon.apna pata va phon No bheje ,jissesamachar patr ki prati aapke pas bheji jaa sake.
naveenatrey@gmail.com
my phon No 9627969696

यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...