केस
रात्रि 2-3 दिसम्बर, 1984 भोपाल में स्थित यूनियन कार्बाइड इंडिया लिमिटेड (यूसीआईएल)
के संयंत्र से मिथाइल आइसोसायनेट गैस का रिसाव।
प्रभाव
लगभग 15 हजार लोग इस गैस की चपेट में आने के कारण तड़प-तड़प कर अपने प्राणों से हाथ धो बैठे। और लगभग 5 लाख लोग इस गैस के दुष्प्रभावों से प्रभावित हुए। इसके अलावा पशुधन और पेड़-पौधों का जो नुकसान हुआ उसका तो शायद आज तक कोई रिकार्ड भी नहीं बन पाया होगा। पेड़ों की सभी पत्तियां सूख कर झड़ गई। लगभग एक सप्ताह तक यह जहरीली गैस वहां के वातावरण में घुली रही और जो भी इसकी चपेट में आया उसे इसने अपना ग्रास बना लिया।
दोषी
वॉरेन एंडरसन, यूसीसी अध्यक्ष (फिलहाल भारत से भागा हुआ है)
केशव महेन्द्रा, अध्यक्ष
विजय गोखले, मैनेंजिंग डायरेक्टर
किशोर कामदार, वाइस प्रसीडेंट
जे. मुकुंद, वर्क्स मेनेजर
एस.पी. चौधरी, प्रॉडक्शन मेनेजर
के.वी. शेट्टी, प्लांट सुपरीटेंडेंट
एस.आई. कुरेशी, प्रॉडक्शन सहायक
आर.वी. रॉय चौधरी, सहायक वर्क्स मेनेजर (सुनवाई के दौरान मृत्यु हो गई)
एक तरह से कांग्रेस और कानून
परिणाम
लगभग 25 साल बाद इस त्रासदी का फैसला आया। 23 वर्षों तक सुनवाई चली, 19 जज बदले गए। और फैसले की घड़ी आई तो लोगों को मिली न्याय की एक ओर त्रासदी। इतने वर्षों की लड़ाई के बाद पीडि़तो ने अपने आप को कानून और सरकारी तंत्र के द्वारा अपने को ठगा हुआ सा पाया। दोषीयों को मात्र दो-दो वर्ष की कैद और एक लाख रूपए जुर्माने की मामूली सी सजा सुनाई गई। कम्पनी पर केवल 5 लाख रूपए का जुर्माना लगाया गया। जो कि पीडि़तो के जले पर नमक छिड़कने के बराबर था। इन दोषियों में भी एक कम्पनी का अध्यक्ष वॉरेन एंडरसन हमारी नपुंसक सरकार के लचर रवैये के कारण अभी भी देश से भागा हुआ है। और नहीं लगता कि कभी वापस भी लाया जाएगा।
व्यथा
इस त्रासदी से पता चलता है कि इस देश में आम आदमी के लिए कोई कानून नहीं है, कोई सरकार नहीं है। ये केवल उद्योगपतियों और उच्च वर्गो के लिए ही है। 15000 लोगों की जान केवल 1 लाख रूपए और 2 वर्ष की कैद। किस लोकतंत्र की बात कर रहे हैं कहां है लोकतंत्र इस देश में गुण्डातंत्र है, नोटतंत्र है, वोटतंत्र और न जाने कौन-कौन से तंत्र है, सिर्फ लोकतंत्र ही नहीं है। जिसके पास ये सभी तंत्र हैं उसी का कानून है और उसी की ये सरकार है। शायद यही कारण है कि इस त्रासदी से पीडि़त लोगों को भी ये मालूम था कि फैसला क्या आने वाला है और उन्होंने खुलेआम कहा कि हमें ना इस सरकार पर कोई विश्वास है न ही इस नपुंसक कानून पर जो कि केवल लिखे हुए उन धाराओं को ही सब कुछ मानता है जिसका फायदा उठाकर गुनाहगार आसानी से बच निकलता है, और ऐशों आराम की जिंदगी जीता है। उसे प्रत्यक्ष लोगों का दर्द नहीं दिखता। उसे उस माता का दर्द नहीं दिखता जिसके सामने उसके पूरे परिवार ने दम तोड़ दिया। और खुद आज उसकी हालत ऐसी है कि ना उसके पास खाने के लिए दो जून की रोटी है और ना ईलाज कराने के लिए इतना पैसा। कितने ही परिवारों की तीन-तीन पीढि़यां इस त्रासदी का ग्रास बन गई हैं। जिस देश में कानून के नाम पर आम आदमी से ऐसा मजाक किया जाता हो तो सोचिए उस देश से क्या उम्मीद की जा सकती है। वाकई किसी ने सही कहा है कि ये देश तो केवल राम भरोसे चल रहा है। पूरी दुनिया आज भारत को धिक्कार रही है कि ये किस प्रकार का देश है जो कि अपने नागरिको को भी न्याय नहीं दिला सकता और विश्वशक्ति बनने का दंभ भरता है। बेकार है ये परमाणु सम्पन्नता।
अरे सत्ता के मद में चूर और गरीबों के खून में भीगों कर रोटी खाने वालों बस करो ये राजनीति का नंगा नाच नहीं तो वो दिन दूर नहीं जब यही सताए हुए कुचली हुई आम जनता में से ही कोई चन्द्रशेखर आजाद और भगत सिंह बनकर तुम्हें तुम्हारी करनी का फल देगा।