Monday, December 22, 2008

"खुशवंत को ठेस लगी?"

सरदार खुशवंत सिंह पिछले कई सप्ताह से अपने साप्ताहिक स्तंभ 'बुरा मानो या भला' में हिन्दू संत-महात्माओं तथा साध्वियों के विरुध्द खुलकर दुष्प्रचार में लगे हुए थे। वे शायद बहक कर यहां तक लिख गये कि 'इस्लामी आतंकवाद' का प्रचार सुनियोजित षडयंत्र के रूप में किया जा रहा है। खुशवंत सिंह 26 नवम्बर की रात को दिल्ली में अपने निवास स्थान में बैठे टेलीविजन पर मुम्बई हमले के दृश्य देख रहे थे। वे अपने 13 दिसंबर को प्रकाशित स्तंभ 'ना काहू से दोस्ती, ना काहू से बैर' में लिखते हैं- 'टीवी पर यह भी बताया गया कि एक हमलावर को मार गिराया गया है। मैंने उम्मीद की और प्रार्थना की कि उसके शव की जांच से यह पता न चले कि वह मुसलमान था। अफसोस कि वह मुसलमान था। और इसी तरह बाकी गैंग के सदस्य भी मुसलमान थे-पाकिस्तानी थे।'

खुशवंत सिंह आगे लिखते हैं, 'इससे उन लोगों को बहुत ठेस पहुंची है जो भारत और पाकिस्तान के लोगों के बीच पुल बनाने का काम करने की कोशिश कर रहे थे।'

खुशवंत सिंह ने अपने लेख में आतंकवाद के विरुध्द एकजुटता की संभावना व्यक्त की है किंतु क्या उनके उपरोक्त शब्दों से यह आभास नहीं होता कि वे हृदय से चाहते थे कि मुम्बई कांड में किसी मुसलमान को दोषी न पाया जाए, जिससे वे हिन्दू संगठनों पर, साधु-साध्वियों पर निकाली गई अपनी भड़ास को सही सिध्द कर सकें?

मुम्बई पर हुए आतंकी हमले के पीछे पाकिस्तानियों का हाथ उजागर हो जाने से भारत के सेकुलरवादी, वामपंथी तथा हिन्दू विरोधी तत्वों के 'हिन्दू आतंकवाद' का हौव्वा खड़ा करने के मंसूबों पर पानी फिर गया।
- साभार पांचजन्य

5 comments:

रंजना said...

हिन्दुओं को गालियाँ देना और अंगरेजी में बात करना दोनों ही प्रगतिशीलता की निशानी मानी जाती है.....क्या कीजियेगा. सार्थक आलेख हेतु आभार.

निर्मला कपिला said...

sabhi ko kewal rashter dharam ki jaroorat hai verna insaan ko insaan bnaane me sabhi dharm nakamyab rahe

drdhabhai said...

सरके हुए लोगों की बात का बुरा नहीं मानते...वो भी उम्र के आखरी दौर मैं है...वैसे भी खुशवंत सिंह दारू और औरत की बातें करते ही अच्छे लगते हैं...ये राष्ट्र वगैरा उनके समझ की के बाहर की चीजें है...

Gyan Darpan said...

खुशवंत जी सठिया गए है वैसे भी इन्हे देश भक्ति से क्या लेना देना ये दारू में ही मस्त रहते है |

indianrj said...

अब समझ में आता है क्यों कुछ लोग इतनी जल्दी प्रसिद्ध हो जाते हैं (विवादास्पद बयानबाजी करके). खुशवंतजी जैसे लोग हिंदुस्तान में जन्म लेते हैं, हिंदुस्तान में रहते हैं, इसकी हवा में साँस लेते हैं, इसका अन्न खाते हैं लेकिन गुण औरों के गाते हैं. इन्होने ये दुआ क्यों की कि हमलावर मुसलमान न हों, ये तो ईश्वर जाने, लेकिन इनका दुःख देखकर वो कहावत याद आ गई "अगर बाड ही खेत को खाने लगे तो उस खेत का भगवान् ही मालिक"

यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...