Wednesday, November 30, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (25)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (25)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 25-11-2011

वेदों में बार-बार कहा गया है कि मनुष्य बनो, अच्छे मनुष्य बनो लेकिन हमने मनुष्य को बांट दिया। जो नास्तिक है धर्म तो उसके लिए भी है, ईश्वर ने सभी के लिए हवा बनाई है, सभी के लिए सूर्य बनाया है। उसने किसी को अलग नहीं किया। यदि वह किसी से विभेद करना चाहता तो अलग सूर्य, हवा और पानी बनाता। जो वेद-उपनिषद की धारा से खुद को जोड़ सके वही हिन्दू है। ऐसे कितने लोग हैं, जो इन बातों पर विश्वास करते हैं। जब सभी एक-दूसरे से जुड़ेंगे तो ही कुछ होने का अर्थ निकलेगा। सदियां बदल जाने से हिन्दू होने का अर्थ नहीं बदल जाता लेकिन मैं यहां भी कहना चाहता हूं कि हिन्दुओं को आघात देश के कुछ हिन्दुत्व के होलसेल डीलरों ने भी पहुंचाया वहीं कांग्रेस ने अपनी धर्मनिष्ठा और चरित्र ही बदल दिया। बाकी सभी जातिवादी राजनीति का ढिंढोरा पीटते रहे।

बात महात्मा गांधी से संबंध रखती है। कांग्रेस का 26वां अधिवेशन मद्रास में हो रहा था। महात्मा गांधी की रुचि उन दिनों अध्यात्म में अधिक थी, परन्तु फिर भी वह लोगों की बात मानकर ऐसे अधिवेशनों में चले जाया करते थे। एक दिन शाम के समय अयंगर महोदय एक मशविरा लेकर आए जिसका ताल्लुक हिन्दू-मुस्लिम समझौतों को लेकर था।

बापू ने कहा- ''आपसी सौहार्द से बड़ी बात क्‍या है? समझौता किसी भी शर्त पर हो, यह अच्छी बात है।'' अयंगर महोदय चले गए। रात को बापू ने पूरे प्रस्ताव का अध्ययन किया।

प्रात:काल होने पर बापू बड़े उद्विग्न नजर आए। उन्होंने महादेव देसाई को जगाया और काका कालेलकर को भी बुलाया और कहने लगे- ''रात को मुझ से बड़ी भूल हो गई। मैंने प्रस्ताव को एकसरसरी निगाह से देखकर उसे ठीक कह दिया था परन्तु उसमें तो मुस्लिम बंधुओं को गोवध की इजाजत देने का भी प्रावधान किया गया है। मैं तो 'स्वराज' की कीमत पर भी गोरक्षा का संकल्प नहीं छोड़ सकता। मुझे प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं, परिणाम जो भी हो इस भारत की भूमि पर जब तक गोरक्‍त की एकबूंद भी गिरेगी, यह राष्ट्र कभी शांति से नहीं रह सकता। प्रस्ताव रद्द हो गया। इसे कहते हैं धर्मनिष्ठा और इसे कहते हैं चरित्र। आजादी की लड़ाई लडऩे वाली कांग्रेस ने धर्मनिष्ठा और चरित्र को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्वधर्म समभाव भी है। मैंने इस पक्ष को इस नजरिये से देखा है मसलन हिन्दू धर्म को मानने वालों की बात करें। इस देश में इसी के अंग कश्मीर से तीन लाख लोग इसलिए निकाल दिए गए क्‍योंकि वह गीता और रामायण पढ़ते थे, मंदिरों में जाते थे, ओम नम: शिवाय का जाप करते थे। सभी ने मगरमच्छी आंसू बहाए, हिन्दुओं का दर्द किसी ने नहीं जाना।

1980 के दशक में जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से सारा पंजाब धू-धू कर जल उठा, राष्ट्र विरोधी ताकतों ने हिन्दू-सिखों के शाश्वत संबंधों पर कुठाराघात किया। बसों से उतार कर एक ही समुदाय के लोगों को मारा जाने लगा, तो हजारों हिन्दू परिवार पंजाब छोडक़र पलायन कर गए। आज इस घटना का जिक्र तक नहीं किया जाता। मैं पहले भी कहता आया हूं।

''जुनून हिन्दू का हो या हो जुनून मुस्लिम का

जब भी जलते हैं, गरीबों के घर जलते हैं।''

आइए गुजरात चलते हैं। गोधरा की घटना एक राजनीतिक षड्यंत्र था, जिसे राष्ट्रद्रोहियों ने रचा था, उस षड्यंत्र के तार सीमा पार से जुड़े थे, उनका उद्देश्य वही था, जिसमें वह सफल हुए। योजना के मुताबिक ट्रेन अग्रिकांड की घटना गोधरा के बदले चिंचलाव स्टेशन पर घटनी थी। चिंचलाव में इसे 100 गुणा ज्यादा वीभत्स बनाया जाना था। ट्रेनों के समय में विलम्‍ब के कारण यह कार्यक्रम बदला गया। 56 रामभक्त जिंदा जला दिए गए। अगर गोधरा कांड न होता तो दंगे भी नहीं होते।

''गोधरा में जो मरे, वो निरपराध थे,

बाद में जो मरे, वो भी निरपराध थे।''

मैंने स्वयं गोधरा के बाद हुए दंगों को हिन्दुत्व पर कलंक बताया था लेकिन कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने गोधरा ट्रेन नरसंहार को महज हादसा बताने का प्रयास किया। कई जांच आयोग बने। चुनावों के ठीक पहले ऐसी रिपोर्ट लीक की गई जिसने इस कांड को महज हादसा बताया। हिन्दू संगठनों को फासिस्ट करार दिया गया। कांग्रेस ने गांधी के गुजरात को गोडसे का गुजरात करार दिया। उसका उद्देश्य मुसलमानों को भडक़ा कर वोट प्राप्त करना था। श्रीमती सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस चुनाव अभियान की शुरूआत श्रीगणेश, अम्‍बा जी के मंदिर में दर्शन करके किया था। हिन्दुओं के वोट हड़पने के लालच में किए इस नाटक का क्‍या असर होना था, इसकी प्रतिक्रिया हिन्दू मतदाताओं पर कांग्रेस के विरुद्ध ही हुई। (क्रमश:)

Tuesday, November 29, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (24)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (24)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 24-11-2011

साम्‍प्रदायिकता तथा लक्षित हिंसा विधेयक के प्रस्तावित प्रारूप का अध्ययन करने के बाद मैं इस निष्कर्ष पर पहुंचा हूं कि इस विधेयक के इरादे यही हैं कि अपना देश एक न रहे, समाज में सद्भाव समाप्त हो जाए, संविधान की भावना के उलट सभी कार्य हों। इस प्रारूप को राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया है, इस परिषद के संवैधानिक अधिकार क्‍या हैं? इस पर भी बहुत से सवाल उठ खड़े हुए हैं। देश में लोकतंत्र है, संसद है, तो फिर हम तथाकथित सलाहकारों के जाल में क्‍यों फंस रहे हैं?

न्याय, संविधान आदि की अवहेलना करने वाला यह विधेयक क्‍या विचार करने योग्य है? इस विधेयक को तो रद्दी की टोकरी में डाल देना ही बेहतर है क्‍योंकि इस विधेयक के पीछे की राष्ट्र विरोधी,घृणित, षड्यंत्रकारी मानसिकता इस पहले प्रारूप में ही साफ हो गई है।

इस विधेयक को लेकर कुछ और बिन्दू स्पष्ट करना चाहूंगा :

  • विधेयक में प्रदेश में साम्‍प्रदायिक हिंसा होने पर कानून व्यवस्था के नाम पर केन्द्र सरकार को''हस्तक्षेप का अधिकार'' दिया गया है। यह भारतीय संविधान में ''संघीय चरित्र'' के विरुद्ध है। राज्यों में साम्‍प्रदायिक हिंसा के नाम पर केन्द्रीय हस्तक्षेप असंवैधानिक है।
  • विधेयक देश के सार्वभौम नागरिकों को अल्पसंख्‍यक (मुस्लिम) और बहुसंख्‍यक (हिन्दू) में बांटकर देखता है।
  • देश की जनगणना के आंकड़ों के अनुसार मुस्लिम 13.5 प्रतिशत, हिन्दू, सिख, इसाई 86.5 प्रतिशत हैं।
  • केन्द्रीय गृह मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार पिछले तीन वर्षों में साम्‍प्रदायिक दंगों की संख्‍या में भारी गिरावट आई है।
  • यह विधेयक बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के लिए उत्तराखण्ड, हिमाचल प्रदेश, उत्तर प्रदेश, बिहार,झारखण्ड, दिल्ली, हरियाणा, राजस्थान, मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, गुजरात, महाराष्ट्र, तमिलनाडु,कर्नाटक, उड़ीसा, पश्चिमी बंगाल, असम, पुड्डुचेरी आदि में गले का फंदा बना है।
  • पंजाब में सिख, कश्मीर में मुस्लिम और उत्तर-पूर्व के राज्यों में इसाई बहुसंख्‍यक हैं।
  • विश्व के किसी भी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है।
  • कांग्रेस का कहना है कि साम्‍प्रदायिक दंगों के समय स्थानीय प्रशासन और पुलिस उनके साथ सही बर्ताव नहीं करती है। प्रशासन एवं पुलिस मुस्लिमों को संदेह की नजर से देखती है, यह गलत है।
  • साम्‍प्रदायिक दंगों के लिए स्थानीय जिला प्रशासन और पुलिस को जवाबदेह बनाने का कोई प्रावधान नहीं है। भारतीय जनता पार्टी, वाम मोर्चा, तीसरी शक्ति साम्‍प्रदायिक हिंसा को राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक समस्या मानती है।
  • विश्व के अधिकांश टीवी समाचार चैनलों पर धार्मिक समारोह रपट विरले ही प्रसारित की जाती है।
  • विपक्ष का आरोप है कि साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक में बहुसंख्‍यक हिन्दुओं को ''खलनायक की भांति चित्रित किया गया है।''
  • कांग्रेस का आरोप है कि मीडिया शांति और सौहार्द स्थापना में रचनात्मक भूमिका अदा नहीं कर रहा है। प्रधानमंत्री डा. सिंह ने मीडिया को सौहार्द, शांति के लिए रचनात्मक कार्य करने की सलाह दी।
  • विपक्ष के अनुसार विधेयक के प्रावधान नागरिक स्वतंत्रता के संविधान प्रदत्त प्रावधानों का अतिक्रमण करते हैं। विधेयक नागरिकों को धर्म और जाति के नाम पर विभाजित करता है।
  • विधेयक के अनुसार हिन्दू, मुस्लिमों के लिए अलग-अलग आपराधिक दण्ड संहिता (फौजदारी कानून) होंगे। परिणामस्वरूप साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक हिन्दू बहुसंख्‍यकों के लिए भस्मासुर बनेगा। उसका दुरुपयोग होने की संभावना से इन्कार नहीं किया जा सकता है।
  • विधेयक से हिन्दू-मुस्लिमों में ''परस्पर अविश्वास'' और अधिक गहराएगा। अत: यह संविधान विरोधी साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक मसौदा खारिज किया जाए। वर्तमान में साम्‍प्रदायिक हिंसा से निपटने के अनेक सख्‍त कानून हैं उनका उपयोग क्‍यों नहीं किया जा रहा है? (क्रमश:)

Monday, November 28, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (23)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (23)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 23-11-2011

दुनिया के किसी देश में धर्म के नाम पर कोई साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक नहीं है। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी की अध्यक्षता वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने साम्‍प्रदायिक हिंसा विधेयक का मसौदा तैयार कर डाला। इसके अधिकांश सदस्य 'सैकुलर ब्रिगेड' के हैं, जिनमें भाजपा और हिन्दुत्व विरोधी अभियानकर्ता हर्षमंदर, अरुणा राय का नाम लिया जा सकता है।

इस सम्‍पादकीय को आगे बढ़ाने से पहले मैं कुछ बिन्दु स्पष्ट करना चाहता हूं :

  • प्रोफेसर के.सी. पाण्डे के भिवंडी, महाराष्ट्र, अहमदाबाद के साम्‍प्रदायिक दंगों के अध्ययन के अनुसार हिन्दू-मुस्लिम फसाद ''विकास के असमान ढांचे'' के कारण हुए। उनका धर्म से कोई लेना-देना नहीं था। देशभर में प्रसिद्ध स्वर्ण मंदिर अमृतसर में है। भगवान कृष्ण को लेकर रहीमजी, रसखान ने जनप्रिय रचनाएं लिखीं। मलिक मोहम्‍मद जायसी ने पदमावत की रचना की। दादूवाणी को लिपिबद्ध करने वाले रज्जबदास (पठान रज्जब खान) थे। अमीर खुसरो की प्रसिद्ध भक्ति रचना ''छाप तिलक सब छोड़ी है।'' बादशाह अकबर ने हिन्दू-इस्लाम का मिला-जुला धर्म चलाया। अकबर के दरबार में अग्नि की पूजा होती थी। शाहजहां के बड़े शहजादे दारा शिकोह ने उपनिषदों का अनुवाद किया। परनामी सम्‍प्रदाय के संस्थापक महामति प्राणनाथ ने कुरान का अनुवाद किया। आजाद हिन्द फौज में जनरल शाहनवाज खान थे। पठान बादशाह खान सीमांत गांधी कहलाए।
  • कांग्रेस राजनीतिक रूप से लोकसभा की 185 सीटों में प्रभावी मुस्लिम वोट बैंक पर मोहिनी काम बाण छोडऩा चाहती है। सन् 1984 के लोकसभा चुनाव तक कांग्रेस का प्रतिबद्ध वोट बैंकअनुसूचित जाति (दलित), अनुसूचित जनजाति (वनवासी) और मुस्लिम (कुल 120 लोकसभा सुरक्षित सीट) था। कांग्रेस में ब्राह्मण नेतृत्व के कारण देश के ब्राह्मण पार्टी से जुड़े थे। अयोध्या में राम मंदिर शिलान्यास (नवम्‍बर 1989), मंडल आरक्षण आंदोलन (1990), अयोध्या में बाबरी मस्जिद विध्वंस (दिसम्‍बर 1992), बहुजन समाज पार्टी उदय से ओबीसी, दलित, मुस्लिम स्थायी रूप से कांग्रेस छोड़ गए।
  • कांग्रेस के सैकुलर वृंदगान-मुस्लिम प्रेम के कारण लोकसभा में मुस्लिम सांसदों की संख्‍या 25 वर्षों में घटकर आधी रह गई।
  • प्रधानमंत्री डा. मनमोहन सिंह का कहना है कि देश के संसाधनों पर ''मुस्लिमों-अल्पसंख्‍यकों का प्रथम अधिकार है।'' प्रधानमंत्री ने फरमाया कि साम्‍प्रदायिक दंगों, आतंकी विस्फोटों की जांच करने वाली एजैंसी को पूर्वाग्रह मुक्‍त, स्वतंत्र और निष्पक्ष छानबीन करनी चाहिए।
  • न्यायाधीश राजेन्द्र सच्चर रपट के अनुसार सन् 1947 से सन् 2007 के 60 वर्षों में मुस्लिमों की आर्थिक, सामाजिक दशा दयनीय रही अर्थात सत्तारूढ़ कांग्रेस ने मुस्लिम प्रेम के पाखण्ड में उन्हें मुख्‍यधारा से नहीं जोड़ा। मुस्लिमों के युवजन उच्च शिक्षा, विशेषज्ञता शिक्षा में पिछड़ गए।
  • देश में प्रधान न्यायाधीश हिदायतुल्ला रहे। राष्ट्रपति पद पर डा. जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद, डा. एपीजे अब्‍दुल कलाम रहे। विश्व के किसी भी लोकतांत्रिक देश अमरीका, फ्रांस,ब्रिटेन, जर्मनी, रूस, कनाडा, अफ्रीका आदि में अल्पसंख्‍यक मुस्लिम को राष्ट्रपति पद नहीं मिला।
  • सन् 2004 लोकसभा चुनाव में मुस्लिम बहुल लोकसभा क्षेत्रों में पीएम सईद, बेगम नूरबानो रामपुर, सीके जाफर शरीफ आदि क्‍यों हारे?
  • विश्व के महाकोषों में समाज से सम्‍प्रदाय शब्‍द बना है। अधिकांश विकसित देश साम्‍प्रदायिकता (कम्‍युनलिज्म), धर्म निरपेक्षता (सैकुलरिज्म) शब्‍दों का प्रयोग करना ही नहीं चाहते। दूसरे देशों में हिंसा करने वाले समाजकंटक अपराधी हैं। उन्हें धार्मिक चश्मे से नहीं देखा जाता है। अधिकांश शासनाध्यक्षों-राष्ट्राध्यक्षों के धार्मिक स्थल (गिरजाघर, मस्जिद, बौद्ध विहार, यहूदी मंदिर आदि) में पूजा करते चित्र नहीं प्रकाशित होते हैं।
  • देश में 10 वर्षों में आतंक से लड़ते 1851 नागरिकों और 6728 पुलिस जवानों ने शहादत दी। उनमें अधिकांश हिन्दू थे। (क्रमश:)

Sunday, November 27, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (22)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (22)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 22-11-2011

कांग्रेस का जनाधार जब भी खिसकता है या उसे भ्रष्टाचार और घोटालों के कारण झटके पर झटका लगता है तो वह ऐसा ब्रह्मास्त्र चलाने की फिराक में रहती है कि देश के 18 करोड़ मुस्लिम मतदाता किसी न किसी तरह पट जाएं। नरसिम्‍हा राव शासन में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुस्लिम मतदाता उससे अलग हो गए थे जो आज तक पूरी तरह उसके साथ जुड़ नहीं सके। कभी वह हिन्दू संतों को निशाना बनाती है, कभी हिन्दुत्व पर प्रहार करती है तो कभी हिन्दुओं की आस्था से खिलवाड़ करती है।

सोनिया गांधी की बनाई नैशनल एडवाइजरी काउंसिल के कुछ मुस्लिम व वामपंथी सदस्यों द्वारा बहुसंख्‍यक हिन्दुओं के खिलाफ कड़ा कानून बनाने को तैयार किए गए मसौदे को ही प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह कानून बनाने की जी-जान से कोशिश कर रहे हैं। यह मसौदा यदि विधेयक के रूप में संसद में आया और पास हो गया तो देश में एक और बंटवारे का रास्ता तैयार हो जाएगा क्‍योंकि इसमें ईसाई और मुसलमानों को संरक्षण देने के लिए ऐसे प्रावधान रखे गए हैं जिससे हिन्दुओं की हालत गुलाम जैसी हो जाएगी। सोनिया गांधी खुद ईसाई हैं। वह आगे चुनावों में कांग्रेस की जीत की रणनीति के तहत मुसलमानों को खुश करने के लिए किसी भी हद तक जा सकती हैं। इसी योजना के तहत साम्‍प्रदायिकता विरोधी विधेयक लाने की जोर-शोर से तैयारी चल रही है लेकिन इसकी पहली बैठक में ही 6 राज्यों के मुख्‍यमंत्रियों ने नहीं आकर विरोध जता दिया। उड़ीसा के मुख्‍यमंत्री ने कह दिया कि यह बिल तो ऐसा है कि यदि कहीं पर किसी अल्पसंख्‍यक ने कुछ किया और दंगा हुआ तो बहुसंख्‍यक समुदाय के खिलाफ कार्रवाई होगी। इसके अलावा इस मुद्दे पर केन्द्र सरकार राज्य सरकार को बर्खास्त भी कर सकती है। इससे तो इस देश के बहुसंख्‍यक हिन्दुओं की हालत गुलामों की हो जाएगी। सोनिया गांधी अमरीका व ईसाई जमात के अलावा मुस्लिम वोट बैंक को खुश करने के लिए अपनी देखरेख में बनवाए साम्‍प्रदायिकता विरोधी बिल को अपने यसमैन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह के मार्फत लाने की तैयारी कर रही हैं। पहली बैठक में तो सब कुछ उल्टा पड़ गया, लेकिन उस मसौदे में कुछ इधर-उधर करके फिर उस पर बहुमत बनाने की कोशिश होगी। किसी भी तरह इसे फरवरी 2012 तक संसद में पास कराकर मुसलमानों को खुश करने की योजना है लेकिन पहली बैठक में तो झटका लग गया।

यूपीए सरकार में जयचंदों और मीर जाफरों की कोई कमी नहीं है जिनका एकमात्र लक्ष्य सामाजिक सद्भाव को बिगाड़ कर अपना उल्लू सीधा करना है। साम्‍प्रदायिक हिंसा रोकने को विधेयक 2006 में संसद में पेश कर दिया गया था, लेकिन इसमें पारित नहीं किया जा सका था। भाजपा ने जब इसका विरोध किया था तो कांग्रेस ने उसे साम्‍प्रदायिक करार दिया था। इस विधेयक में देश के नागरिकों को अल्पसंख्‍यक, बहुसंख्‍यक, दलित-पिछड़े, जातियों के मध्य विभाजित किया गया है। संविधान विशेषज्ञ भी यह मानते हैं कि धारा 15 में यह साफ-साफ कहा गया है कि जाति या धर्म के आधार पर किसी भी नागरिक के साथ भेदभाव नहीं किया जा सकता। यह संविधान की मूल भावना है तथा सामान्य संशोधन से भी इसे अपवाद के तौर पर भी नहीं छोड़ा जा सकता। यह विधेयक इसी आधार पर भेदभाव मूलक है। वैसे भी संविधान में अल्पसंख्‍यक-बहुसंख्‍यक की कोई व्याख्‍या ही नहीं की गई। देश में कहीं पर कोई भाषा के आधार पर अल्पसंख्‍यक है तो कहीं धर्म के आधार पर बहुसंख्‍यक इसलिए इस विधेयक को कांग्रेस की तुष्टीकरण नीति के रूप में देखा जा रहा है। बाकी चर्चा मैं कल के लेख में करूंगा। (क्रमश:)

Friday, November 25, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (21)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (21)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 21-11-2011

हिन्दुओं की सहिष्णुता की परीक्षा सैकड़ों वर्ष पहले ही शुरू हो गई थी। 1920 में गांधी जी ने कांग्रेस को खिलाफत आंदोलन में झोंक दिया और आजादी की लड़ाई दरकिनार हो गई। कारण था कि खिलाफत आंदोलन में बोलते हुए मौलाना अब्‍दुल बारी ने कहा था कि ''मुसलमानों का सम्‍मान खतरे में पड़ जाएगा, यदि हमने हिन्दुओं का सहयोग नहीं लिया। हमें गौ वध बंद कर देना चाहिए क्‍योंकि हम एकही भूमि की संतान हैं' किन्तु सम्‍मान का खतरा भारत में नहीं था। यह तुर्की के मुसलमानों की समस्या थी, जिसे भारतीय मुसलमान ओढक़र चल पड़े थे। 1857 के बाद आजादी की लड़ाई में भारतीय मुसलमानों ने कब साथ दिया? वे 1906 में मुस्लिम लीग की स्थापना के बाद से ही अलग से मुस्लिम राष्ट्र की प्राप्ति के लिए आगे बढऩे लगे थे। 1946 का चुनाव इस केन्द्रीय प्रश्र पर ही लड़ा गया था कि भारत अखंड रहे या उसका विभाजन हो और उस चुनाव के परिणामों से स्पष्ट है कि 99 प्रतिशत हिन्दुओं ने कांग्रेस के 'अखंड भारत' के आह्वान के समर्थन में वोट दिए तो 97 प्रतिशत से अधिक मुस्लिम समाज ने जिन्ना के 'पाकिस्तान' की मांग के समर्थन में वोट डाले और मौलाना आजाद जैसे राष्ट्रवादी नेता की पूर्ण उपेक्षा कर दी।

1947 में मिली विभाजित आजादी से लेकर आज तक हुए छोटे-बड़े एक हजार हिन्दू-मुस्लिम दंगे किसने किए? इसका विश्लेषण होना जरूरी है।

सब जानते हैं कि राष्ट्रीय एकता की स्थापना तब तक नहीं हो सकती जब तक सब के मन में स्वदेशी पूर्वजों के प्रति सम्‍मान, इस देश की पुरातन संस्कृति के प्रति अपनत्व और गौरव और मातृभूमि के प्रति भक्ति का भाव न हो। युगोस्लाविया, चीन, बुल्गारिया आदि ने जो मुस्लिम समस्या को हल करने के लिए लम्‍बे प्रयास किए, वह असफल क्‍यों हो गए? इंग्लैंड जैसे उदारवादी देश में बसे मुसलमानों की यह मांग उठती रही है कि एक धार्मिक सम्‍प्रदाय के नाते उनके लिए अलग संसद बनाई जाए?

क्‍यों मुस्लिम समस्या ही हमारे लम्‍बे स्वातंत्र्य संघर्ष के मार्ग में बाधा बनकर खड़ी रही और क्‍यों देश विभाजन के बाद भी 'स्वतंत्र भारत' की राजनीति भी आज तक इस 'समस्या' के चारों ओर घूम रही है? 'मुस्लिम पहचान की रक्षा' के पुराने प्रश्र, जिसके 'द्विराष्ट्रवाद' के सिद्धांत ने 'पाकिस्तान' के रूप में भारत के सिर पर 'स्थायी शत्रु' बनाकर खड़ा किया, पुन: विकराल रूप लेकर खड़ा हो गया है? कुछ गिने-चुने देशभक्त उदारवादी मुस्लिम नेता अवश्य चिंतित हैं किन्तु उनकी आवाज मुस्लिम समाज में'नक्कारखाने में तूती' की आवाज जैसी ही है।

समय आ गया है कि यदि इस देश को फिर से एक और विभाजन से बचाना है तो खुले रूप से निर्णय लेना होगा कि इस देश के 'पुरखे श्रीराम और श्रीकृष्ण हैं' और कोई भी ताकत आतताई हमलावर बाबर को उनके समकक्ष खड़ा नहीं कर सकती। सबको यह बात विदित रहनी चाहिए कि 'सैलाब में सब कुछ अपने साथ बहा ले जाने की शक्ति होती है' और पीछे जमीन को फिर से उर्वरा बनाने की भी।

लौकिकता, सर्वधर्म समभाव तथा प्रजातंत्र वास्तव में देश में कभी नहीं चलाए गए। अल्पसंख्‍यकों के वोट बटोरकर अपनी गद्दी सुरक्षित करने के बाद हिन्दू बहुमत को गाली देना, उन्हें आतंकित करना,उन्हें साम्‍प्रदायिक तथा देश विरोधी बताना कांग्रेस नेतृत्व की पुरानी प्रवृत्ति है जबकि वह हिन्दू बहुमत के वोट और नोट से ही शासक बनते हैं। अगर हिन्दू साम्‍प्रदायिक होते तो राज्य हिन्दुत्वनिष्ठ संस्थाओं का होता, इन सेक्‍युलरवादियों का नहीं। देश का बंटवारा करने वाले मुसलमान तो राष्ट्रीय और कांग्रेस को खंडित भारत का शासक बनाने वाले हिन्दू साम्‍प्रदायिक कहे जाते हैं। क्‍या यह विडम्‍बना नहीं है कि मौ. आजाद ने अपने को अखंड भारत का समर्थक बताया और बंटवारे के लिए नेहरू और पटेल को उत्तरदायी बताया। आज राम मंदिर भूमि विवाद से सम्‍बन्धित हलचल और असंतोष के लिए सारे विश्व में हमारी ही सरकार हिन्दुओं को उत्तरदायी ठहराकर बदनाम कर रही है। बाहर बीजेपी या आरएसएस को कौन जानता है। विदेशियों की नजर में हिन्दुओं के अत्याचारों के शिकार मुसलमान हो रहे हैं, ऐसा ही प्रचार और प्रसार हो रहा है। प्रतिक्रिया में मंदिर और गुरुद्वारे 'अपमानित' किए जा रहे हैं और हमारी सरकारें जबानी जमा खर्च के अलावा कुछ नहीं कर रही हैं। वे तो अपनी गद्दी की सुरक्षा के लिए विरोधी राजनीतिक पक्ष को बदनाम करने में जुटी हैं। (क्रमश:)

Thursday, November 24, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (20)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (20)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 20-11-2011

भारत पूरी दुनिया में श्रीराम और श्रीकृष्ण की भूमि के रूप में जाना जाता है, लेकिन अफसोस अयोध्या में आज तक भव्य श्रीराम मंदिर का निर्माण नहीं हो सका। इलाहाबाद उच्च न्यायालय के आदेश के बावजूद मामला सर्वोच्च न्यायालय में है। श्रीराम मंदिर निर्माण को लेकर जितनी राजनीति इस देश में की गई, उतनी तो मस्जिदों के स्थानांतरण को लेकर मुस्लिम राष्ट्रों में भी नहीं हुई। अफसोस श्रीकृष्ण जन्मभूमि और हिन्दुओं के अन्य आस्था स्थल भी मुक्त नहीं हैं।

राष्ट्रीय अस्मिता और धर्मनिरपेक्षता के बारे में विभिन्न बुद्धिजीवी अपने विचार व्यक्त करते रहते हैं। मुझे अध्ययन के समय पत्तों की तरह जर्द पड़ चुके कागज के कुछ पन्ने मिले, जो सूबेदार मेजर योगेन्द्र कृष्ण ने कभी मुझे भेजे थे। मैं पाठकों के समक्ष उनके विचार प्रस्तुत करना चाहूंगा-

'यह बात निर्विवाद रूप से सोलह आने सत्य है कि भारत वर्ष विश्व में राम और कृष्ण की भूमि के नाम से जाना जाता है और तमाम तथाकथित बुद्धिजीवियों, लेखकों द्वारा भ्रम निर्माण करते रहने के प्रयत्नों के बावजूद बाबर एक हमलावर के रूप में ही इतिहास में दर्ज है और रहेगा। इन लोगों को श्रीराम और बाबर में हिन्दू-मुसलमान का ही अन्तर दिखाई देता है। भारत व संसार भर के करोड़ों लोग प्रतिवर्ष श्रीराम जन्मभूमि और श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर विग्रह के दर्शन, पूजन हेतु हजारों वर्षों से आते रहे हैं। तो क्‍या वे एक कल्पना पर ही इतनी श्रद्धा और विश्वास लेकर आते हैं? इसे गम्‍भीरता और बुद्धिमतापूर्वकसमझने से सब भ्रांतियां तिरोहित हो जाएंगी। हमारे नेता राष्ट्रीय एकता, धर्मनिरपेक्षता, साम्‍प्रदायिक सद्भाव,जाति विहीन समाज, सामाजिक न्याय आदि की लम्‍बी-चौड़ी बातें करते आ रहे हैं तो फिर हम उससे एकदम उल्टी दिशा में बढ़ते हुए क्‍यों दीख रहे हैं जो देश को पुन: विभाजन के निकट ला रही है? हम लम्‍बे समय से इस विनाशकारी राजनीतिक प्रणाली का सक्रिय अंग हो चुके हैं और इससे यह विश्वासपूर्वककहा जा सकता है कि हमारा राजनीतिक नेतृत्व अपनी चुनाव रणनीति और वादे गणित का पूरा गुलाम बन चुका है। उनकी धारणा पक्की बन चुकी है कि मुस्लिम समुदाय ही सबसे पक्का और सबसे बड़ा आधार है क्‍योंकि मुस्लिम मतदाता अपने वोट मजहबी आधार पर ही प्रयोग करते हैं। इससे यह सिद्ध होता है कि उनका धर्मनिरपेक्षता का अर्थ 'हिन्दू आक्रामकता' कहां है? इसी हिन्दू समाज ने 'अपने ही' भ्रांत नेताओं द्वारा 'छाती पर लगे विभाजन के ताजे घाव' को झेलकर भी मुसलमानों को स्वाधीन भारत के'संविधान' में अपने से भी अधिक अधिकार प्रदान करने दिए। हमारे ऋषियों की देन 'एकं सद्विप्रा: बहुध वर्दांत' के घोष वाक्‍य की देन के कारण ही हिन्दू समाज ने बहुसंख्‍यक होते हुए भी यह असामान्य निर्णय लिया। इसमें किसी प्रकार की मजबूरी नहीं थी। इसी के साथ पाकिस्तान ने आजादी के बाद ही 'मुस्लिम राष्ट्र' की घोषणा कर दी जिसका परिणाम स्पष्ट दिख रहा है कि विभाजन के बाद हिन्दुओं की संख्‍या वहां करोड़ से घटकर लाख रह गई। बंगलादेश में भी हिन्दुओं की 'दुर्गति' ठीक वैसी ही हो रही है।

एक ही ऐतिहासिक पृष्ठभूमि वाले इस भूखंड के इन तीनों भागों के आचरण के इस भारी अंतर पर ध्यान दें तो अंतर साफ दिखाई देता है। उन लोगों ने इस्लामी प्रभुसत्ता स्वीकार की और अल्पसंख्‍यकलोगों को जीवित लाशें बना दिया और यहां आज भी 'धर्मनिरपेक्षता' जैसे शासन प्रबंध को स्वीकार ही नहीं किया, इसकी आवाज अधिकांश हिन्दू ही उठा रहे हैं। इसे हमारी कायरता समझा जा रहा है। देश के भीतर और बाहर सब तरह की उत्तेजनाओं के बावजूद भी भारत यदि अब तक धर्मनिरपेक्षवाद पर डटा है, तो उसका एकमात्र कारण हिन्दू परम्‍परा और हिन्दू मानस ही है, जिसे वे दिन-रात कोसते रहते हैं। (क्रमश:)

Wednesday, November 23, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (19)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (19)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 19-11-2011

देश के विरुद्ध जंग छेडऩे सहित कई संगीन अपराधों में दोषी करार दिए गए पाक आतंकवादी अजमल कसाब को जस्टिस ताहिलियानी ने सजा-ए-मौत सुनाई थी। निश्चय ही अदालत के फैसले से मुम्‍बई के आतंकी हमलों में मारे गए निर्दोष लोगों के परिवारों को एक सुकून मिला होगा जिनके परिवार के सदस्य बिना किसी अपराध के ही काल कवलित हो गए थे। शुक्र है कि कसाब जिन्दा पकड़ा गया वरना ये तो पूरी तैयारी के साथ तिलक लगाकर आए थे। सारे के सारे मारे जाते तो तथाकथित धर्मनिरपेक्ष लोग इन्हें हिन्दू करार देते और भारत कभी भी इनका संबंध पाकिस्तान से साबित नहीं कर पाता। ये हिन्दू आतंकवादी नहीं, यह साबित करना भी हिन्दुओं के लिए मुश्किल हो जाता। यह कैसा देश है जहां हत्यारों के बचाव के लिए विधानसभाओं में प्रस्ताव पारित किए जाते हैं। देश में एक नई विचारधारा सृजित करने का प्रयास किया जा रहा है। कभी यहां राजीव गांधी के हत्यारों को आम माफी देने की बात की जाती है तो कभी कसाब की फांसी की सजा माफ करने की मांग की जाती है।

कसाब को सजा सुनाए जाते समय सत्र न्यायालय ने जो टिप्पणियां की थीं, वे काफी आंखें खोलने वाली थीं। न्यायालय ने कहा था कि ''कसाब जैसे आतंकवादी सुधर नहीं सकते। जेहाद के नाम पर धर्मांध लोग कुछ भी कर सकते हैं या इनसे कुछ भी कराया जा सकता है। बेशक ये देश और समाज के साथ मानवता के भी दुश्मन हैं और इन्हें छोड़ देना उपरोक्त तीनों को खतरे में डालना है।''

यह कितना दु:खद है कि इस देश में आतंकवादी को सजा दिए जाने का मामला अब राजनीति का विषय बन चुका है। सभ्‍य समाज में सजा के दो उद्देश्य होते हैं- व्यक्ति के भीतर पश्चाताप का बोध कराना और दूसरों में भय पैदा करना कि यदि उसने भी अपराध किया तो उन्हें भी ऐसी ही सजा मिलेगी।

मौत से हर व्यक्ति डरता है, इसलिए फांसी से अधिक भय पैदा करने वाली सजा कोई दूसरी नहीं हो सकती। अब मानवाधिकार के कुछ समर्थक पहले की ही तरह यह दलीलें दे रहे हैं कि मृत्युदंड की सजा प्रकृति के नियम के खिलाफ है और किसी को भी किसी का जीवन छीनने का अधिकार नहीं। बेशक वे यह बात कहते हुए बेशर्मी से इस बात को भूल जाएंगे कि जिन मासूम निर्दोषों को इन हैवान बन चुके इंसानों ने बेवजह गोलियों से भून डाला, जीने का अधिकार तो उनको भी था। कसाब के मुकद्दमे और उसकी कड़ी सुरक्षा पर सरकार ने केवल इसलिए करोड़ों रुपए खर्च कर दिए कि कोई यह न कहे कि भारत में आतंकवादी कसाब के साथ कोई नाइंसाफी हुई है।

अफजल के बाद कसाब की सजा पर अमल को लेकर जमकर राजनीति हो रही है। सवाल यह है कि अगर फांसी की सजा पर राजनीति की जा रही है तो देश पर आक्रमण करने वालों, सैकड़ों मासूमों का कत्ल कर देने वाले हैवानों को कौन सी सजा दी जाए? जब मौत की सजा का प्रावधान होते हुए भी इन आतंकवादियों को कानून का लेशमात्र भी डर नहीं रहा तो फिर हालात कैसे होंगे। कसाब की सजा को लटका कर वोटों की राजनीति का गणित बैठाया जा रहा है। बहुत से सवाल हैं जिनका उत्तर सरकार,प्रशासन, न्याय व्यवस्था और खुद समाज को ढूंढने होंगे। अगर सरकार कसाब को सजा नहीं देती और उसे जेल में बिरयानी ही खिलाती है तो इतनी महंगी न्यायिक प्रक्रिया चलाने की जरूरत ही क्‍या थी। इंदिरा गांधी ने राजनयिक रविन्द्र हरेश्वर म्‍हात्रे की हत्या होने दी लेकिन मकबूल बट्ट को रिहा नहीं किया था। मकबूल बट्ट को फांसी की सजा दी गई थी। केन्द्र सरकार को याद रखना चाहिए कि पूर्व सेनाध्यक्ष जनरल अरुण कुमार वैद्य के हत्यारे को क्षमादान देने की याचिका पर तत्कालीन राष्ट्रपति आर. वेंकटरमण ने महज 13 घंटे के भीतर फैसला किया था। एक नहीं कई उदाहरण कांग्रेस के सामने मौजूद हैं। यह देश कैसे उदाहरण स्थापित करना चाहता है, इसके बारे में कांग्रेस को सोचना होगा। यदि भारत को बचाना है तो आतंकवाद और न्यायिक फैसले को राजनीति में घसीटा नहीं जाना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद किसी को हस्तक्षेप करने का अधिकार नहीं होना चाहिए। कांग्रेस को देश के सम्‍मान की नहीं अपना सम्‍मान बचाने की चिंता है, इसलिए वह केवल वोटों को निहारती है।(क्रमश:)

Tuesday, November 22, 2011

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (18)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (18)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 18-11-2011

कांग्रेस का साम्‍प्रदायिक चेहरा बार-बार सामने आया है। पहले कांग्रेस के इक्का-दुक्का नेता ही अपने बयानों से चर्चित होते थे, अब हर कोई प्रचार पाने के लिए किसी भी हद तक पहुंच जाता है। कांग्रेस ने अपने कुछ राजनीतिज्ञों को इस काम पर लगाया है कि वे जमकर साम्‍प्रदायिक राजनीति करें और कोई मौका न चूकें।

  • बटला हाऊस मुठभेड़ में शहीद हुए इंस्पैक्‍टर महेश शर्मा की शहादत का अपमान किया गया।
  • 26/11 के मुम्‍बई हमले में शहीद हुए एटीएस चीफ हेमंत करकरे और साथियों की शहादत पर सवालिया निशान लगाया गया। आखिर क्‍यों?

बटला हाऊस मुठभेड़ जांबाज पुलिस बलों की सफलता थी। मारे गए आतंकी मुसलमान थे। कांग्रेस के भोंपू दिग्विजय सिंह के लिए मौका था। दिग्गी ने आजमगढ़ दौरे के दौरान बटला हाऊस मुठभेड़ की न्यायिक जांच की मांग कर डाली। कांग्रेस महासचिव राहुल गांधी की तरफ से शहीद महेश चन्द्र शर्मा के परिवार से सहानुभूति व्यक्त करने की बजाय आरोपी आतंकियों के परिवार से सहानुभूति व्यक्त की गई।

26/11 के मुम्‍बई हमले में शहीद हेमंत करकरे को लेकर पहले अब्‍दुल रहमान अंतुले और बाद में दिग्गी राजा ने सवाल उठाए। दिग्गी राजा ने सनसनीखेज रहस्योद्घाटन किया कि हेमंत करकरे ने हमले से दो घंटे पहले उनसे फोन पर बातचीत की और करकरे ने हिन्दू संगठनों से अपनी जान को खतरा बताया था। उनकी इस बातचीत का कोई फोन रिकार्ड नहीं मिला। दुनिया जानती है कि 26/11 हमले के जिम्‍मेदार पाक के आतंकी संगठन हैं तो फिर इस हमले का रुख हिन्दू संगठनों की ओर मोड़ कर दिग्गी ने भारत सरकार के स्टैंड को ही कमजोर किया। कांग्रेस ने शहीदों की शहादत को झुठलाने का काम किया। शहीद करकरे की पत्नी भी कांग्रेस के रवैये से आहत हुईं और उन्होंने कांग्रेस की निंदा की लेकिन कांग्रेस खामोश रही। उसे तो मुस्लिम वोट बैंक की चिंता है। संसद पर हमले के दोषी अफजल गुरु और 26/11 मुमबई हमले के दोषी कसाब को फांसी की सजा पर भी कांग्रेस ने जमकर साम्‍प्रदायिकराजनीति की।

अफजल का अर्थ होता है विद्वान और श्रेष्ठ लेकिन आजकल एक और ही अफजल को लेकर देश में बहस छिड़ी है। आज की तारीख में अफजल गुरु वह शख्‍स है, जिसको भारतीय संसद पर वर्ष 2001 के हमले के मामले में न्यायालय ने फांसी की सजा दी है। न्यायालय के आदेशानुसार अफजल को 20 अक्तूबर, 2006 को दिल्ली की तिहाड़ जेल में फांसी दी जानी थी, लेकिन सियासतदानों की कारस्तानी और सरकार के ढुलमुल रवैये के कारण 11 अक्तूबर, 2006 को निर्णय लिया गया कि अगले आदेश तकअफजल को फांसी नहीं दी जाएगी। भारत सरकार के गृह मंत्रालय ने इस आशय का पत्र तिहाड़ जेल प्रशासन को लिखा, जिसकी पुष्टि जेल प्रशासन ने भी की। अफजल प्रकरण में जिस प्रकार से केन्द्र में काबिज सत्तारूढ़ कांग्रेस और उसके सहयोगियों ने बयान जारी किए हैं, वह किसी भी सूरत में राष्ट्रहित में नहीं कहे जा सकते हैं। काबिले गौर है कि जब भी कहीं भारत राष्ट्र का जिक्र किया जाता है तो वहां प्रतीक के रूप में संसद या अशोक स्तम्‍भ प्रयुक्त किया जाता है। अफजल ने किसी एक व्यक्ति पर नहीं बल्कि संसद पर हमले की पृष्ठभूमि का ताना-बाना बुनकर पूरे राष्ट्र पर हमला किया। उसने भारत की अखंडता और सम्‍प्रभुत्ता को तार-तार करने का गुनाह किया है, जिसकी सजा मौत और सिर्फ मौत है,लेकिन हमारे सियासतदानों, विशेषकर कांग्रेसियों ने जिस तरह से वोट की राजनीति से अभिभूत होकर मुस्लिम तुष्टीकरण का खेल खेला है, वह किसी भी सूरत में सच्चे भारतीय के लिए सहनीय नहीं है। सबसे पहले जम्‍मू-कश्मीर के मुख्‍यमंत्री गुलाम नबी आजाद और फिर वहीं के पूर्व मुख्‍यमंत्री फारूकअब्‍दुल्ला का कहना कि यदि अफजल को फांसी दी जाती है तो प्रदेश की कानून-व्यवस्था बिगडऩे की आशंका है, हास्यास्पद लगता है। आखिर एक व्यक्ति जिसने पूरे राष्ट्र के प्रजातंत्र के मंदिर पर हमला किया है, उसको सजा नहीं दिए जाने की पैरवी एक जिम्‍मेदार व्यक्ति द्वारा करना ठेस पहुंचाता है। इतना ही नहीं, गुलाम नबी आजाद के बयान का जिस प्रकार से कांग्रेस ने समर्थन किया, वह समझ से परे था। कई राज्यों में होने वाले विधानसभा और निकाय चुनावों के कारण कांग्रेस ने अफजल मामले को उलझाकर रख दिया था। 26/11 के मुम्‍बई हमले में पकड़े गए एकमात्र जीवित आतंकवादी कसाब के मामले में भी यही रुख अपनाया गया जिसकी चर्चा मैं कल करूंगा। (क्रमश:)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? भाग- (17)

क्‍या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (17)

अश्‍वनी कुमार, सम्‍पादक (पंजाब केसरी)

दिनांक- 17-11-2011

इस राष्ट्र में तथाकथित धर्मनिरपेक्षता का लबादा ओढ़े कांग्रेसियों ने राष्ट्रवादियों को आतंकवादी करार देने की पूरी कोशिश की। यह सौ प्रतिशत सत्य है कि आतंकवाद का कोई रंग नहीं होता। यदि कोई भगवा, हरा, काला, नीला या अन्य किसी रंग को आतंक का प्रतीक बताता है तो वह गलत है। ये सब प्रकृति के उपहार हैं। भगवा शब्‍द भगवान या ईश्वर का प्रतीक है लेकिन इस देश में भगवा रंग पर काली सियासत की गई। अपनी विफलताओं को छिपाने के लिए गृहमंत्री पी. चिदम्‍बरम, दिग्विजय सिंह या कुछ अन्य नेताओं ने भगवा आतंकवाद के जुमले का सहारा लिया। ये लोग भगवा आतंकवाद पर प्रहार करके मुस्लिम समुदाय के बीच नायक बनना चाहते हैं। यह प्रवृत्ति अनर्थकारी है। गृहमंत्री और उनके समर्थकों को इतिहास में झांक कर देखना चाहिए कि भगवा संस्कृति और उनके अनुयायी कितने उदार और अहिंसक रहे हैं।

जरा याद कीजिए कांग्रेस के महासचिव राहुल गांधी ने प्रतिबंधित आतंकी संगठन सिमी की तुलना राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से करके अपनी राजनीतिक अपरिपक्‍वता का प्रमाण दिया था। संघ निश्चित रूप से हिन्दू राष्ट्रवाद का प्रवर्तक है और हिन्दू संस्कृति को भारतीय संस्कृति के पर्याय के रूप में देखता है मगर इसकी राष्ट्रभक्ति पर संदेह करना रात को दिन बताने की तरह है। जरा सोचिये आजादी से पहले जब राष्ट्रपिता महात्मा गांधी अपने वर्धा आश्रम के सामने ही लगे संघ के शिविर में गए थे तो अपने स्वयंसेवकों की अनुशासनप्रियता और जाति-पाति के बंधन से दूर देख कर कहना पड़ा था कि यदि कांग्रेस के पास ऐसे अनुशासित कार्यकर्ता हों तो आजादी का आंदोलन अंग्रेजों को देश छोडऩे के लिए बहुत जल्दी मजबूर कर देगा। इतना ही नहीं महान समाजवादी चिंतक और जन नेता डा. राम मनोहर लोहिया ने भी संघ के बारे में कहा था कि यदि मेरे पास संघ जैसा संगठन हो तो मैं पूरे देश में पांच साल के भीतर ही समाजवादी समाज की स्थापना कर सकता हूं। संघ ऐसा संगठन है जिसकी प्रशंसा स्वयं पं. जवाहर लाल नेहरू ने भी की थी।

1962 के भारत-चीन युद्ध के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने जिस प्रकार भारत की सेनाओं का मनोबल बढ़ाने के लिए खुद पूरे देश में आगे बढक़र नागरिक क्षेत्रों में मोर्चा सम्‍भाला था उसे देखकर स्वयं पं. नेहरू को इस संगठन की राष्ट्रभक्ति की प्रशंसा करनी पड़ी थी और उसके बाद 26 जनवरी की परेड में संघ के गणवेशधारी स्वयंसेवकों को शामिल किया गया था। 1965 के भारत-पाक युद्ध के समय भी संघ के स्वयंसेवकों ने पूरे देश में आंतरिक सुरक्षा बनाए रखने में पुलिस प्रशासन की पूरी मदद की थी और छोटे से लेकर बड़े शहरों तक में इसके गणवेशधारी कार्यकर्ता नागरिकों को पाकिस्तानी हमले के समय सुरक्षा का प्रशिक्षण दिया करते थे। इनकी जुबान पर हमेशा भारत माता की जय का उद्घोष रहता है।

भारत में हिन्दू संस्कृति की बात करना क्‍या गुनाह है? संघ पर महात्मा गांधी की हत्या के बाद प्रतिबंध जरूर लगाया गया था मगर बापू की हत्या में संघ के किसी कार्यकर्ता का हाथ नहीं पाया गया था। हिन्दू महासभा के नेता स्व. वीर विनायक दामोदर सावरकर को भी इस हत्याकांड में गिरफ्तार किया गया था मगर उनकी राष्ट्रभक्ति पर भी क्‍या कोई कांग्रेसी प्रश्र चिन्ह लगा सकता है? सावरकर के गुरु बंगाल के क्रांतिकारी श्याम जी कृष्ण वर्मा थे। संघ और हिन्दू महासभा की विचारधारा में भी मूलभूत अंतर शुरू से ही रहा है।

हिन्दू सभा राजनीति का हिन्दूकरण और हिन्दुओं के सैनिकीकरण के पक्ष में थी जबकि संघ के संस्थापक डा. बलिराम केशव हेडगेवार का लक्ष्य हिन्दुओं का मजबूत सांस्कृतिक संगठन स्थापित करना था। इस सच को कैसे झुठलाया जा सकता है कि 1947 में भारत का बंटवारा होने के समय संघ के कार्यकर्ताओं ने पश्चिमी पाकिस्तान (पंजाब) के मोर्चे पर हिन्दुओं की रक्षा की थी।

मैं फिलहाल राजनीतिक सोच की बात नहीं कर रहा हूं बल्कि संघ की व्यावहारिक कार्यप्रणाली की बात कर रहा हूं। संघ भारतीय संस्कृति का विश्वविद्यालय रहा है। यह जिस हिन्दू गौरव की बात करता है उसका मतलब मुस्लिम विरोधी नहीं है बल्कि मुस्लिम पहचान को भारत की जड़ों में खोजना है।(क्रमश:)

खौफ : हर महीने दस हिंदू परिवार छोड़ रहे पाकिस्तान

खौफ : हर महीने दस हिंदू परिवार छोड़ रहे पाकिस्तान


पाकिस्तान के सिंध प्रांत में बीते कुछ हफ्तों के दौरान तीन हिंदुओं की हत्या और अपहरण की घटनाओं के कारण समुदाय की स्थिति का अंदाजा लगाया जा सकता है। पाकिस्तान हिंदू परिषद और पाकिस्तान हिंदू सेवा आदि संगठनों का दावा है कि भेदभाव, फिरौती के लिए अपहरण, जबरदस्ती धन वसूली और दबाव डालकर धर्म परिवर्तन की घटनाओं के कारण कई हिंदू परिवार विदेश में पलायन कर गए हैं और यह प्रवृत्ति दिनों-दिन बढ़ रही है। पाकिस्तान हिंदू परिषद के अध्यक्ष संजेश कुमार ने कहा, सरकार यह बात महसूस नहीं कर रही है कि किस तेजी से यह पलायन हो रहा है, क्योंकि हिंदू समुदाय के मन में असुरक्षा की भावना है। कुमार ने कहा कि अनुमान के अनुसार हर माह करीब आठ से दस हिंदू परिवार पाकिस्तान से पलायन कर जाते हैं। इनमें से अधिकतर मध्यम वर्ग या संपन्न तबके के हैं।

उन्होंने कहा कि गरीब या निचले तबके के हिंदुओं के पाकिस्तान में बने रहने के अलावा कोई और चारा नहीं है। कुमार ने कहा कि यह दुखद है कि सदियों जिन परिवारों की जड़ें सिंध में रही हैं उन्हें पलायन करना पड़ रहा है। यह दुखद सचाई है। गैर आधिकारिक रूप से पाकिस्तान में 70 लाख हिंदू रहते हैं जो दुनिया में हिंदुओं की पांचवीं सबसे बड़ी आबादी है। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के के एक वरिष्ठ अधिकारी ने बताया कि हिंदुओं का पलायन पाकिस्तान के लिए नुकसान है, क्योंकि भारत सहित विदेश जाने वाले इन लोगों में से अधिकतर पेशेवर, डॉक्टर, इंजीनियर, किसान हैं या अपने बड़े व्यवसाय चला रहे हैं। काउंसिल के संस्थापक रमेश कुमार ने कहा कि यह पाकिस्तानी अर्थव्यवस्था के लिए प्रतिभा पलायन है, क्योंकि हिंदुओं का मानना है कि उन्हें वह सुरक्षा और अधिकार नहीं मिल रहे जो अन्य पाकिस्तानियों को उपलब्ध हैं।

राजनीतिक विश्लेषकों और सामाजिक विज्ञान विशेषज्ञों का मानना है कि अल्पसंख्यकों विशेषकर हिन्दुओं के लिए स्थिति में नाटकीय परिवर्तन जनरल जिया उल हक के 11 साल के सैन्य शासन के दौरान आया। पूर्व खिलाड़ी मोहिंदर कुमार याद करते हैं, जिया के समय से पहले चीजें अलग थीं। काफी सहिष्णुता थी तथा हिन्दू लोग अपने मुस्लिम पड़ोसियों के साथ बिना भय के शांति से रहते थे। उन्होंने कहा, जिया के समय से कट्टरपंथ और असहिष्णुता बढ़ गई तथा अपराधियों ने अल्पसंख्यक समुदाय के लोगों को निशाना बनाना शुरू कर दिया। हिंदुओं में आज जो भय है उसका कारण वास्तविक जीवन की घटनाएं हैं। घटनाओं के शिकार बने परिवार उस बारे में बात नहीं करना चाहते, क्योंकि उन्हें उसके नतीजों का भय है।

मशहूर बालीवुड अभिनेत्री जूही चावला के रिश्तेदार सतीश आनंद का कराची में 2009 में अपहरण हो गया था। छह माह तक बंधक बनाए रखने के बाद उन्हें रिहा कराने के लिए अपहरण करने वालों को फिरौती की रकम चुकाई गई। आनंद ने घटना की याद करते हुए बताया कि उन्हें पाकिस्तान के कबाइली क्षेत्र मीरांशाह से चार-पांच घंटे के सफर वाली दूरी पर स्थित बानू में उन्हें बंद करके रखा गया था। उन्होंने कहा, मैंने अपने जीवन में कभी इतना असहाय महसूस नहीं किया। इस घटना के बाद हमारे कुछ परिजन विदेश पलायन कर गए। मशहूर निर्माण एवं वितरण कंपनी का स्वामित्व करने वाले आनंद की रिहाई के लिए एक करोड़ रुपये दिए गए थे। पाकिस्तान हिंदू काउंसिल के राजेश कुमार का कहना है कि पिछले कुछ महीनों में ही कराची से करीब 200 हिंदू परिवार पाकिस्तान से पलायन कर गए।

पाकिस्तान मानवाधिकार आयोग, सिंघ के उपाध्यक्ष अमरनाथ मोटूमल ने कहा कि अल्पसंख्यक विशेषकर गरीब लोग चुपचाप सब सह रहे हैं। कुमार कहते हैं कि फिरौती के लिए अपहरण के अलावा हिंदुओं को जबरदस्ती धन वसूली तथा बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के लिए मजबूर किया जा रहा है विशेषकर अंदरूनी इलाकों में। उन्होंने कहा कि सिंध में इस तरह के धर्म परिवर्तन लगभग हर हफ्ते होते हैं। हाल में खैरपुर, दादू और जैकबाबाद से हिंदू लड़कियों के अपहरण के कारण हिंदू परिवारों को मजबूरी में उन गांवों को छोड़ना पड़ा जहां वे सदियों से रह रहे थे। स्थानीय लोगों के अनुसार अकेले घोटकी में ही करीब 800 परिवार बाहर चले गए। कुमार ने 2007 में सिंध उच्च न्यायालय में बलपूर्वक धर्म परिवर्तन के खिलाफ एक याचिका दायर की थी।

उसके बाद से चार वर्ष गुजर गए और उन्हें अब तक यह उम्मीद है कि कुछ ठोस परिणाम आएंगे। कुमार कहते हैं, मुझे पाकिस्तान की न्यायिक प्रणाली में पूरा भरोसा है। देखिए क्या होता है। साल भर पहले ठेकेदार हिमेश कुमार के पुत्र नितिन का कराची में उसके स्कूल से बाहर अपहरण कर लिया गया। अपहरणकर्ताओं के साथ कई महीने तक चली बातचीत के बाद नितिन को अंतत: रिहा कर दिया गया। पुत्र की रिहाई के बाद कुमार अपने परिवार के साथ भारत चले गए। उन्होंने इस बारे में सिर्फ करीबी मित्रों को जानकारी दी और अपना व्यवसाय समेटकर वे चुपचाप चले गए।

जैकबाबाद निवासी दो बच्चों की मां द्रौपदी मंधन को अपने जीवन में धार्मिक भेदभाव का सामना पहली बार उस समय करना पड़ा जब वह चिकित्सा को अपना करियर बनाने के लिए कराची आई। उन्होंने कराची में एक मकान तय किया और उसके लिए एक एस्टेट एजेंट के जरिए सौदा किया, लेकिन वह जब उस घर में रहने गई तो मकान मालिक ने उन्हें भगा दिया। द्रौपदी याद करती हैं कि मकान मालिक ने उन्हें एवं उनके बच्चे को अपवित्र कहा और उनसे सौदे को भूल जाने को कहा।

स्रोत:- दैनिक जागरण 21 नवम्‍बर 2011

यह आम भारतीय की आवाज है यानी हमारी आवाज...