क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है? (25)
अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 25-11-2011
वेदों में बार-बार कहा गया है कि मनुष्य बनो, अच्छे मनुष्य बनो लेकिन हमने मनुष्य को बांट दिया। जो नास्तिक है धर्म तो उसके लिए भी है, ईश्वर ने सभी के लिए हवा बनाई है, सभी के लिए सूर्य बनाया है। उसने किसी को अलग नहीं किया। यदि वह किसी से विभेद करना चाहता तो अलग सूर्य, हवा और पानी बनाता। जो वेद-उपनिषद की धारा से खुद को जोड़ सके वही हिन्दू है। ऐसे कितने लोग हैं, जो इन बातों पर विश्वास करते हैं। जब सभी एक-दूसरे से जुड़ेंगे तो ही कुछ होने का अर्थ निकलेगा। सदियां बदल जाने से हिन्दू होने का अर्थ नहीं बदल जाता लेकिन मैं यहां भी कहना चाहता हूं कि हिन्दुओं को आघात देश के कुछ हिन्दुत्व के होलसेल डीलरों ने भी पहुंचाया वहीं कांग्रेस ने अपनी धर्मनिष्ठा और चरित्र ही बदल दिया। बाकी सभी जातिवादी राजनीति का ढिंढोरा पीटते रहे।
बात महात्मा गांधी से संबंध रखती है। कांग्रेस का 26वां अधिवेशन मद्रास में हो रहा था। महात्मा गांधी की रुचि उन दिनों अध्यात्म में अधिक थी, परन्तु फिर भी वह लोगों की बात मानकर ऐसे अधिवेशनों में चले जाया करते थे। एक दिन शाम के समय अयंगर महोदय एक मशविरा लेकर आए जिसका ताल्लुक हिन्दू-मुस्लिम समझौतों को लेकर था।
बापू ने कहा- ''आपसी सौहार्द से बड़ी बात क्या है? समझौता किसी भी शर्त पर हो, यह अच्छी बात है।'' अयंगर महोदय चले गए। रात को बापू ने पूरे प्रस्ताव का अध्ययन किया।
प्रात:काल होने पर बापू बड़े उद्विग्न नजर आए। उन्होंने महादेव देसाई को जगाया और काका कालेलकर को भी बुलाया और कहने लगे- ''रात को मुझ से बड़ी भूल हो गई। मैंने प्रस्ताव को एकसरसरी निगाह से देखकर उसे ठीक कह दिया था परन्तु उसमें तो मुस्लिम बंधुओं को गोवध की इजाजत देने का भी प्रावधान किया गया है। मैं तो 'स्वराज' की कीमत पर भी गोरक्षा का संकल्प नहीं छोड़ सकता। मुझे प्रस्ताव स्वीकार्य नहीं, परिणाम जो भी हो इस भारत की भूमि पर जब तक गोरक्त की एकबूंद भी गिरेगी, यह राष्ट्र कभी शांति से नहीं रह सकता। प्रस्ताव रद्द हो गया। इसे कहते हैं धर्मनिष्ठा और इसे कहते हैं चरित्र। आजादी की लड़ाई लडऩे वाली कांग्रेस ने धर्मनिष्ठा और चरित्र को बहुत पीछे छोड़ दिया है। सच तो यह है कि धर्मनिरपेक्षता का अर्थ सर्वधर्म समभाव भी है। मैंने इस पक्ष को इस नजरिये से देखा है मसलन हिन्दू धर्म को मानने वालों की बात करें। इस देश में इसी के अंग कश्मीर से तीन लाख लोग इसलिए निकाल दिए गए क्योंकि वह गीता और रामायण पढ़ते थे, मंदिरों में जाते थे, ओम नम: शिवाय का जाप करते थे। सभी ने मगरमच्छी आंसू बहाए, हिन्दुओं का दर्द किसी ने नहीं जाना।
1980 के दशक में जब पाकिस्तान प्रायोजित आतंकवाद से सारा पंजाब धू-धू कर जल उठा, राष्ट्र विरोधी ताकतों ने हिन्दू-सिखों के शाश्वत संबंधों पर कुठाराघात किया। बसों से उतार कर एक ही समुदाय के लोगों को मारा जाने लगा, तो हजारों हिन्दू परिवार पंजाब छोडक़र पलायन कर गए। आज इस घटना का जिक्र तक नहीं किया जाता। मैं पहले भी कहता आया हूं।
''जुनून हिन्दू का हो या हो जुनून मुस्लिम का
जब भी जलते हैं, गरीबों के घर जलते हैं।''
आइए गुजरात चलते हैं। गोधरा की घटना एक राजनीतिक षड्यंत्र था, जिसे राष्ट्रद्रोहियों ने रचा था, उस षड्यंत्र के तार सीमा पार से जुड़े थे, उनका उद्देश्य वही था, जिसमें वह सफल हुए। योजना के मुताबिक ट्रेन अग्रिकांड की घटना गोधरा के बदले चिंचलाव स्टेशन पर घटनी थी। चिंचलाव में इसे 100 गुणा ज्यादा वीभत्स बनाया जाना था। ट्रेनों के समय में विलम्ब के कारण यह कार्यक्रम बदला गया। 56 रामभक्त जिंदा जला दिए गए। अगर गोधरा कांड न होता तो दंगे भी नहीं होते।
''गोधरा में जो मरे, वो निरपराध थे,
बाद में जो मरे, वो भी निरपराध थे।''
मैंने स्वयं गोधरा के बाद हुए दंगों को हिन्दुत्व पर कलंक बताया था लेकिन कांग्रेस और अन्य धर्मनिरपेक्ष दलों ने गोधरा ट्रेन नरसंहार को महज हादसा बताने का प्रयास किया। कई जांच आयोग बने। चुनावों के ठीक पहले ऐसी रिपोर्ट लीक की गई जिसने इस कांड को महज हादसा बताया। हिन्दू संगठनों को फासिस्ट करार दिया गया। कांग्रेस ने गांधी के गुजरात को गोडसे का गुजरात करार दिया। उसका उद्देश्य मुसलमानों को भडक़ा कर वोट प्राप्त करना था। श्रीमती सोनिया गांधी ने भी कांग्रेस चुनाव अभियान की शुरूआत श्रीगणेश, अम्बा जी के मंदिर में दर्शन करके किया था। हिन्दुओं के वोट हड़पने के लालच में किए इस नाटक का क्या असर होना था, इसकी प्रतिक्रिया हिन्दू मतदाताओं पर कांग्रेस के विरुद्ध ही हुई। (क्रमश:)