क्या हिन्दुस्तान में हिन्दू होना गुनाह है?(9)
अश्वनी कुमार, सम्पादक (पंजाब केसरी)
दिनांक- 09-11-2011
अंग्रेजों के शासनकाल में 1871 में विलियम विल्सन हंटर की अध्यक्षता में एक कमेटी बनाई गई थी। इस कमेटी का गठन अंग्रेजों ने मुसलमानों की स्थिति का अध्ययन करने के लिए किया था। हंटर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मुसलमानों के पिछड़ेपन के लिए तत्कालीन भारतीय राज्य और हिन्दुओं को दोषी ठहराया था। जिस प्रकार हंटर कमेटी की सिफारिशों के गर्भ में अलगाववाद का बच्चा पलता रहा। वह बच्चा आज बड़ा हो चुका है।
मनमोहन सिंह सरकार ने 2005 में जस्टिस राजेन्द्र सच्चर की अध्यक्षता में एक उच्चस्तरीय कमेटी बनाकर मुसलमानों के आर्थिक, सामाजिक और शैक्षिक पिछड़ेपन का अध्ययन करवाया। सच्चर कमेटी ने जो सिफारिशें कीं वस्तुत: वह तुष्टीकरण का पुलिंदा मात्र हैं। सच्चर कमेटी ने यह भी सिफारिश की कि मुस्लिम बहुल चुनाव क्षेत्र मुस्लिमों के लिए आरक्षित कर दिए जाएं। यदि ऐसे निर्वाचन क्षेत्र अनुसूचित वर्ग के लिए आरक्षित हैं तो उन्हें भी रद्द कर दिया जाए। सरकार ने भी सच्चर कमेटी की सिफारिशों को यथावत लागू करने की बात मान ली। इस पर संसद में न तो बहस कराई गई न ही कोई कार्यवाही रिपोर्ट (एटीआर) पेश की गई। आखिर सरकार को जल्दी किस बात की थी, जबकि रिपोर्ट में मुसलमानों के पिछड़ेपन का मुख्य कारण जनसंख्या वृद्धि तथा शिक्षा की उपेक्षा का उल्लेख तक नहीं किया गया। मुसलमानों के पिछड़ेपन का कारण सब जानते हैं। इस देश में जाकिर हुसैन, फखरुद्दीन अली अहमद देश के सर्वोच्च पद राष्ट्रपति पद पर रहे। मोहसिना किदवई, नजमा हेपतुल्ला और अनेक मुस्लिम महिलाएं उच्च पदों पर रहीं। सलमान खुर्शीद, फारूक अब्दुल्ला और कई अन्य मुस्लिम मंत्री देश की सेवा कर रहे हैं। इसमें कोई संदेह नहीं कि यही मनमोहन सरकार का एजैंडा है, जो सच्चर कमेटी की सिफारिशों के रूप में सामने आया है।
सच्चर कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में क्या कहा, जरा उस पर भी नजर डालें- कमेटी ने कहा है कि मुसलमान अपने को सर्वत्र असुरक्षित महसूस करता है। नकाबपोश मुस्लिम महिलाओं तथा दाढ़ी और टोपी वाले मुसलमानों को बहुसंख्यक हिन्दू जनता घृणा और संदेह की दृष्टि से देखती है। पुलिस और प्रशासनिक अधिकारी अल्पसंख्यकों के साथ अत्याचार करते हैं। मुसलमानों के साथ पूरी मशीनरी धार्मिकभेदभाव करती है। नौकरियों के चयन में मुसलमानों के साथ भेदभाव किया जाता है। वोटर लिस्ट से जानबूझकर सरकारी मशीनरी मुसलमानों के नाम काट देती है। प्राथमिक स्तर पर उर्दू को प्रोत्साहन न मिलने से नवोदय की परीक्षा में मुसलमान बच्चे प्रवेश नहीं पाते हैं। इतनी शिकायतें दर्ज कराने के साथ ही मुस्लिमों की बदहाली दूर करने के लिए सच्चर ने जो सुझाव दिए हैं वे भी कम हास्यास्पद नहीं हैं। उनके अनुसार इस्लाम में ब्याज का लेना या देना हराम है इसलिए बैंकों को मुस्लिमों के लिए अपनी व्यवस्था बदलनी चाहिए। जिले की सभी कल्याणकारी योजनाओं का एक निश्चित भाग मुसलमानों के लिए आरक्षित कर दिया जाए तथा इसके क्रियान्वयन के लिए मुसलमानों की एक कमेटी बना दी जाए। मदरसा शिक्षा बोर्ड को सीबीएसई के समान मान्यता दी जाए, जिसमें मदरसों की आधारभूत सुविधाओं तथा शिक्षकों का पूरा खर्च केन्द्र सरकार उठाए किन्तु शिक्षकों की नियुक्ति और पाठ्यक्रम निर्धारण में उसका कोई हस्तक्षेप न हो।
श्री किदवई, श्री हाशमी और श्री कुरैशी तथा जावेद हुसैन संघ लोक सेवा आयोग के सदस्य रहे हैं। उन्होंने तो कभी मुसलमानों से भेदभाव की शिकायत नहीं की। सच तो यह है कि जिन मुसलमानों ने ऊंचे ओहदे सम्भाले वे काफी उच्च शिक्षा प्राप्त रहे। आश्चर्य होता है कि सच्चर कमेटी को इस लोकतंत्र की खासियत नजर नहीं आई, बल्कि उन्हें शिकायतें ही नजर आईं। पुलिस सेवा, नौकरशाही, लोकसेवा आयोग, अस्पताल,चिकित्सक तथा शिक्षा जगत में भी मुस्लिम उच्च पदों पर रहे तो हिन्दुओं द्वारा उनसे भेदभाव करने की बात को सच नहीं माना जा सकता। (क्रमश:)
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