Monday, November 14, 2011

हिन्‍दुओं की कत्लगाह बनता पाकिस्तान

अभिषेक रंजन

पाकिस्तान में अल्पसंख्यक समुदाय खासकर हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर राष्ट्रपति आसिफ अली जरदारी और प्रधानमंत्री यूसुफ रजा गिलानी एक बार फिर सवालों के घेरे में आ गए हैं। पाकिस्तान में अल्पसंख्यक इसाई, हिंदू और सिख कौम पर पाकिस्तान में हमले कोई नई बात नहीं है। यही वजह है कि डरे-सहमे अल्पसंख्यक लोग भारत सहित दुनिया के कई देशों में अपने जानमाल की हिफाजत करने के लिए पाकिस्तान से पलायन कर रहे हैं। इसकी चिंता न तो इस्लामाबाद को है और न ही नई दिल्ली में बैठी हमारी सरकार को।

ताजा घटना सिंध की राजधानी कराची से 400 मील दूर चक कस्बे की है। यहां ईद-उल-जुहा के दिन बंदूकधारियों ने तीन हिंदू डॉक्टरों की हत्या कर दी, जिसके बाद अल्पसंख्यक हिंदू समुदाय में दहशत का माहौल व्याप्त है। दरअसल, फीस के मुद्दे पर झगड़ा होने के बाद इस कबीले के कुछ लोग बदला लेने की फिराक में थे। दिवाली से ठीक पहले तीन हिंदू युवकों को एक मुस्लिम नर्तकी के साथ पकड़ लिया गया। कबीले के लोगों ने कहा कि लड़की के साथ बलात्कार हुआ है। लिहाजा, इसके बदले में एक हिंदू लड़की दी जाए, जिसके साथ चार मुस्लिम बलात्कार करेंगे। हिंदुओं को यह बात बेहद नागवार गुजरी, क्योंकि न तो उस नर्तकी के साथ बलात्कार किया गया था और न ही उसे नाचने के लिए मजबूर किया गया था। घटना के कई दिन बीत जाने के बाद भी स्थानीय पुलिस कोई ठोस कार्रवाई नहीं कर पाई है। इससे यह बात साबित होती है कि किस तरह पाकिस्तान की पुलिस ऐसे अपराधों में लिप्त लोगों का साथ देती है।

गौरतलब है कि चक कस्बे में हिंदुओं की कुल आबादी पचास हजार के करीब है। इस घटना के बाद यहां के लोग इस कदर खौफजदा हैं कि उन्होंने घरों से निकलना बंद कर दिया। एक लिहाज से वहां कई दिनों तक अघोषित कफ्र्यू जैसा माहौल था। हिंदू डॉक्टरों की हत्या के बाद पाकिस्तान हिंदू परिषद ने राष्ट्रपति जरदारी, चीफ जस्टिस इफ्तिखार चौधरी और सेना प्रमुख जनरल अशफाक कयानी से अपील की है कि सिंध के अलग-अलग हिस्सों में हिंदुओं पर हो रहे हमलों को रोका जाए।

बता दें कि पाकिस्तान की 17.5 करोड़ की आबादी में हिंदुओं की संख्या दो प्रतिशत से भी कम है। पाकिस्तान की आज जैसी हालत हो गई है, उस स्थिति में वहां रहने वाले हिंदू, इसाई और सिख समुदाय के लोगों का जीना दुश्वार हो गया है। इसी साल जनवरी में ईश निंदा के आरोप में लाहौर जेल में बंद ईसाई महिला आसिया बीवी की हिमायत करने की खातिर पंजाब प्रांत के गवर्नर सलमान तसीर की हत्या उनके ही अंगरक्षक मुमताज कादरी ने इस्लामाबाद में कर दी थी। उसके दो महीने बाद ही पाकिस्तान के अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री शाहबाज भट्टी की भी हत्या कर दी गई। मारे गए ये दोनों नेताओं की गिनती एक उदार शख्स के रूप में होती थी। तसीर और भट्टी दोनों सत्ताधारी पाकिस्तान पीपुल्स पार्टी के सीनियर लीडर थे, लेकिन अफसोस की बात यह है कि जरदारी और गिलानी की हुकूमत उनकी शहादत से कोई सीख नहीं लेना चाहती। इससे ज्यादा तकलीफ की बात और क्या हो सकती है कि जिस विवादास्पद ईश निंदा कानून में संशोधन करने की मंशा इन्होंने जाहिर थी, उस प्रस्ताव को गिलानी सरकार ने वापस ले लिया। उनके इस कदम से मानवाधिकार कार्यकर्ताओं को काफी धक्का लगा है। जिस सोच के साथ पाकिस्तान की बुनियाद पड़ी थी, वह ख्याल आज कहीं नहीं दिखाई दे रहा है। यह अफसोसनाक है कि मुहम्मद अली जिन्ना ने जो तसव्वुर किया था, वह सही मायनों में पाकिस्तान का मुकद्दर नहीं बन सका।

आज दुनिया तरक्की का ख्वाब देख रही है, लेकिन पाकिस्तान अपनी रुढि़वादी सोच पर ही कायम है। बच्चों में धार्मिक कट्टरवाद का बीज बोने के साथ ही वहां खुलेआम हिंदुओं के प्रति नफरत का पाठ पढ़ाया जा रहा है। स्कूलों की पाठ्य पुस्तकें ईसाइयों और हिंदुओं के खिलाफ जहर उगल रही हैं। इन किताबों में अल्पसंख्यकों को दोयम दर्जे के नागरिक के रूप में सामने लाया जा रहा है। एक अमेरिकी रिपोर्ट में ये बातें सामने आई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक पाठ्य पुस्तकों के इस्लामीकरण का काम सैन्य शासक जिया उल हक के जमाने में ही शुरू हो गया था। इसके बाद वर्ष 2006 में सरकार ने किताबों से विवादास्पद अंश हटाने की घोषणा की, लेकिन यह कागजों तक ही सीमित रह गई।

वर्ष 1947 में पाकिस्तान बनने के बाद कहा गया कि था कि यहां अल्पसंख्यकों को पूरे अधिकार दिए जाएंगे, लेकिन हुआ इसका ठीक उल्टा। हालांकि मोहम्मद अली जिन्ना ने कहा था कि पाकिस्तान एक मुस्लिम देश जरूर होगा, लेकिन आज के हालात पर गौर करें तो पाकिस्तान में गैर मुसलमानों की परिस्थितियां खासी चिंताजनक हैं। उनकी अपनी पहचान एक तरह से खो गई है। बंटवारे से पहले पाकिस्तान में हिंदुओं की आबादी लगभग 20 फीसदी थी, जो छह दशकों के बाद महज दो फीसदी रह गई है। जितने हिंदू बचे हैं, वे किस तरह जी रहे हैं, इसकी आप कल्पना भी नहीं कर सकते।

यह जानकर किसी को भी आश्चर्य होगा कि पाकिस्तान में रहने वाले लाखों हिंदुओं के किसी भी त्योहार पर पाकिस्तान सरकार की ओर से कोई छुट्टी घोषित नहीं है। चाहे दिवाली-दशहरा हो या रामनवमी, हिंदुओं को इस खास दिन भी छुट्टी नहीं दी जाती। अल्पसंख्यकों के हितों की बात करने वाली पाकिस्तान सरकार के पास इस बात का कोई जबाव है?

जहां तक भारत की बात है कि उसने तो पाकिस्तान के हिंदुओं को उनके हाल पर छोड़ दिया है। पिछले दिनों प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह सार्क सम्मेलन में हिस्सा लेने मालदीव गए। वहां उनकी मुलाकात पाकिस्तान के प्रधानमंत्री गिलानी से हुई। दोनों नेताओं ने गर्मजोशी के साथ द्विपक्षीय मसलों पर बात की, लेकिन पाकिस्तान में हिंदुओं की सुरक्षा को लेकर प्रधानमंत्री ने अपने समकक्ष से कोई चर्चा नहीं की।

दरअसल, अभी इस्लामाबाद और नई दिल्ली की सरकार अपने आपसी रिश्ते और कारोबारी रिश्तों की मजबूती पर जोर दे रही हैं। लेकिन दोनों सरकारों को यह नहीं भूलना चाहिए कि सरहदों के दोनों ओर अगर आम आदमी सुरक्षित नहीं हैं तो अमन बहाली की सारी कोशिशें बेकार हैं।

(लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार हैं)

स्रोत:- दैनिक जागरण 14 नवम्‍बर 2011

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